संभव है ज़िंदगी उतनी कठिन न हो जितनी देखने से लगती हो। संभव है जीने वाला उस ज़िंदगी को हँसी-खुशी अपना कर आगे बढ़ रहा हो। हो सकता है कि जो आम धारणा उसके जीवन के प्रति बन गई हो वो उसे अपनी इच्छाशक्ति से पलट देना चाहते हों। अपनी नजरों से बेचारगी का पर्दा हटा कर एक बार नजर तो मिलाएं, हो सकता नजरिया ही बदल जाए। बैसाखियों और व्हीलचेयर से आगे झाँकने का प्रयास तो करें हो सकता है हमारे पास नृत्य की नई अजब-गज़ब मुद्राएं हों। काले चश्में और छड़ी से हटकर देखिए तो हमारे मन में भी रंगीनियां भरी पड़ी हों शायद। हमारी इशारे में होती बातों को समझने की कोशिश तो कीजिए हो सकता है फुसफुसाहट में नए स्वर हों। यह सब कुछ है बस देखने का प्रयास ही नहीं किया जाता। खुशी, मुस्कुराहट, मस्ती, और मौज से भरपूर विकलांग भी होते हैं। विकलांगता केवल उदासी, अकेलेपन, मजबूरी, और बेचारगी नहीं होती। उससे कहीं आगे की यात्रा होती है। विकलांगों को अजीब नजरों से देखना बंद कीजिए, उन्हें दोस्त की तरह अपना कर देखें। हो सकता है कि जो आपको बेचारा नजर आ रहा था वही आपको जीना सिखा जाए। हो ये भी सकता है कि उससे मिलकर आप और उदास या परेशान हो जाएं। ऐसे में उस पर तरस या रहम दिखाने की जगह उसे हौंसला दें जैसे मुसीबत में पड़े दोस्तों को दिया जाता है। संभव है आपका दिया कुछ पलों का साथ और विश्वास भरा स्पर्श किसी के जीवन का संबल बन जाए और आपको एक नया दोस्त मिल जाए। विकलांग का हौंसला उसके अभिभावक, परिजन, और उसे संभालने वाले तो होते ही हैं, उनमें अगर दोस्त भी जुड़ जाएं तो ज़िंदगी उतनी भी कठिन न रहे, जितनी नजर आती है। बहुत मेहनत और मशक्कत से किसी विकलांग के प्रियजन उसे समाज का और समाज को उसका हिस्सा बनाने में लगे रहते हैं। इन सब में उनका इतना समय व्यतीत हो जाता है कि कुछ और सोचने का उन्हें वक़्त ही नहीं मिलता। कि तभी कहीं से एक आवाज आती है-
‘आप जब तक हो तब तो ठीक है लेकिन आपके बाद इसका क्या होगा?’
यह सवाल सवालों की दुनिया का परमाणु हथियार है। पल भर में यह सभी उम्मीदों को धुंआ बनाकर उड़ा डालता है। प्रियजनों के अब तक किए सभी प्रयत्न धराशायी हो जाते हैं। इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं होता शायद इसलिए ही यह प्रश्न किया जाता है। किसी भी व्यक्ति के आत्मविश्वास की धज्जियाँ उड़ा सकता है यह प्रश्न। उनको जवाब देते हुए कहना चाहिए-
‘बस ऐसे ही चिंता करने वाले की तलाश थी हमें कब से। आपने आज यह पूछकर बड़ा उपकार कर दिया हम पर। हमारी सब से बड़ी चिंता खत्म हुई। हमारे बाद अब आप हो न यह सोचकर अब हमें शांति मिली। हमारे बाद आप होंगे न इसकी देखभाल करने को। अब हमें कोई चिंता नहीं। अब आप रोज आ-जाया करें ताकि यह आपके साथ और आप इसके साथ सहज हो सकें। भगवान तो हमारे यहाँ स्वयं पधार गए आज। आपने यह पूछ कर हमारा मरना क्या जीना भी आसान कर दिया। अब हम बेफिक्र होकर कहीं भी जा सकेंगे। आपके रहते पीछे इसकी चिंता नहीं रहेगी।’
अगर अभिभावकों द्वारा और खुद विकलांगों द्वारा ऐसे प्रश्नों ऐसा ही कुछ जवाब दिया जाए तो और कुछ हो न हो यह जरूर होगा कि अगली बार यह प्रश्न सुनने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। न किसी विकलांग को न उनके प्रियजनों को। प्रश्न करने वाला अपने ही प्रश्न में उलझा नजर आएगा। जैसे धरती की तरफ आते किसी भारी भरकम पिण्ड का रास्ता बदल दिया गया हो।
यूँ तो मौत का कोई भरोसा नहीं लेकिन उससे डर कर जीना तो नहीं छोड़ा जाता। हमें लम्हा दर लम्हा मिलाकर व मिलकर जीना होगा। अगले पल या अगले कल की चिंता रहेगी तो आज नष्ट हो जाएगा। हमारे पास इस आज के सिवा वैसे भी बचता ही क्या है। विकलांगता भी यही सिखाती है कि जो आज की परिस्थिति है उसे मन से अपना कर जिया जाए। खुल के मुस्कुरा कर जिया जाए। काले चश्में का रंग बदलिए। व्हीलचेयर के नीचे के डीजे-फ्लोर को महसूस कीजिए। इशारों के सन्नाटे में छिपे संगीत को सुनिए। कोई कुछ भी कहता रहे हम आज पर आने वाले कल को हावी नहीं होने दे सकते। यही, हाँ यही, बिल्कुल यही एक पल ही तो ज़िंदगी है।
यह जीवन है..बंधु..सब कुछ नियति के आधीन है…कोई शोक या खुशी मिलती है तो उसे धीरज से ग्रहण करें..
बहुत कुछ लिखा गया है की .कल्पना नही की जा सकती है बहुत सुंदर विचार वहत्क्त किए गे है
गमों का दौर भी आए तो मुस्कुरा के जियो…🌹🍫💐
मानसिक रुप से विकलांग लोग दया और सहायता के पात्र होते हैं, तुम तो समाज की प्रेरणा हो, बाकी जीवन को तो मै एक सपना मान कर चलती हूं,
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