बौद्धिक विकलांगता एक ऐसी स्थिति है जिसके लक्षण बच्चों आरम्भिक आयु में ही नज़र आने लगते हैं। ख़ास बात यह है कि इन लक्षणों को जितना जल्दी हो सके पहचान कर बच्चों को चिकित्सीय सहायता देना उनके लिए बहुत अच्छा साबित होता है। हालाँकि बौद्धिक विकलांगता एक लाइलाज स्थिति ही है फिर भी कम उम्र में सहायता मिल जाने पर व्यक्ति अपनी ज़िन्दगी ज़्यादा आत्म-निर्भरता के साथ जीने के क़ाबिल हो सकता है।
यह बहुत ज़रूरी है कि बच्चों के विकासात्मक पड़ावों पर ध्यान देते हुए विकास की धीमी गति और बौद्धिक विकलांगता के लक्षणों को समझा जाए। तो चलिए देखते हैं कि बढ़ते बच्चों में बौद्धिक विकलांगता के क्या लक्षण उभरते हैं और इन लक्षणों के होने की स्थिति में माता-पिता या अभिभावक को क्या करना चाहिये।
बच्चों में बौद्धिक विकलांगता के लक्षण कब नज़र आते हैं?
बौद्धिक विकलांगता के लक्षण कुछ मामलों में शैशव काल में ही नज़र आ जाते हैं जबकि कुछ बच्चों की विकलांगता का पता तब ही चल पाता है जब वे विद्यालय जाना शुरु करते हैं और कक्षा में पिछड़ने लगते हैं। यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर होता है कि बच्चे की विकलांगता की तीव्रता कितनी है। अक्सर जितनी अधिक तीव्रता होती है विकलांगता के लक्षण उतनी ही जल्दी नज़र आने लगते हैं।
उदाहरण के तौर पर ‘मैक्रोसिफैली’ एक ऐसी स्थिति है जिसमें जन्म से ही बच्चे का सिर उसके शरीर के अनुपात में काफ़ी बड़ा होता है और यह ऑटिज्म, बौद्धिक विकलांगता जैसी गंभीर स्थितियों की ओर इशारा करता है। ऐसे बच्चे के जन्म लेते ही चिकित्सक बौद्धिक विकलांगता की बात कर सकते हैं। वहीं कुछ बच्चों के मामले में, कम तीव्र विकलांगता के कारण, वे जब विद्यालय जाने लगे तब भी उनकी बौद्धिक विकलांगता का पता जल्दी नहीं चल पाता।
कई बार बौद्धिक विकलांगता की तीव्रता अधिक होने पर बच्चे में कई दूसरी समस्याओं के भी लक्षण होते हैं जैसे कि – दौरे पड़ना, मूड डिसऑर्डर, दृष्टि, श्रवण या मोटर कौशल में कमी।
बच्चों में बौद्धिक विकलांगता के लक्षण
जैसा कि हमने ऊपर देखा कि तीव्रता के आधार पर अलग-अलग बच्चों में बौद्धिक विकलांगता के लक्षण अलग-अलग वक़्त पर नज़र आते हैं। हर बच्चे में ये लक्षण अलग तरीके से उभर सकते हैं। बौद्धिक विकलांगता के कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं:
- विकास के बौद्धिक पड़ावों (जैसे बातों को समझना, चीजों को एक दूसरे से जोड़ कर समझ पाना) को पार न कर पाना
- अपनी उम्र के अन्य बच्चों की तुलना में चलना, बैठना, बोलना आदि देर से सीखना
- बोलना सीख पाने में या अपनी बात को ठीक से कह पाने में परेशानी
- यादाश्त की समस्या
- किसी काम के परिणाम को समझ पाने में परेशानी
- तार्किक रूप से सोचने में अक्षमता
- अपनी उम्र से काफ़ी छोटे बच्चों जैसा व्यवहार
- जिज्ञासा की कमी
- कुछ नया सीख पाने में परेशानी
इन सामान्य लक्षणों के अलावा बच्चों के व्यवहार में भी बौद्धिक विकलांगता के कुछ लक्षण नज़र आते हैं।
- आक्रामक व्यवहार
- अभिभावक पर सामान्य से अधिक निर्भरता
- अन्य बच्चों के साथ कम घुलना-मिलना
- हर वक़्त अपनी तरफ़ ध्यान आकर्षित करते रहने की कोशिश करना
- किशोरावस्था में अवसाद
- खुद पर नियंत्रण न होना
- खुद को चोटिल करने या हानि पहुँचाने की प्रवृति
- मानसिक विकार
- ध्यान एकाग्र न रख पाना
- आत्म-विश्वास की अत्यधिक कमी
[टिपण्णी: ज़रूरी नहीं कि हर बच्चे में ऊपर दिए सभी लक्षण हों। अलग-अलग बच्चों में अलग-अलग लक्षण होते हैं और दो बौद्धिक विकलांग बच्चे एक दूसरे से बिलकुल भिन्न हो सकते हैं।]
अंत में…
यदि आपको आपके बच्चे में ऊपर दिए कोई लक्षण नज़र आये या उनका व्यवहार सामान्य से अलग दिखे तो एक बार चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें। ऐसे मामलों में थोड़ी-सी लापरवाही कभी-कभी काफ़ी नुकसानदेह साबित हो सकती है। बच्चों के विकास के उम्र में थोड़ा अधिक सचेत रहना उनकी पूरी ज़िन्दगी की दिशा और दशा बदल सकता है।
यदि चिकित्सकीय जाँच के बाद यह तय हो जाता है कि बच्चे को बौद्धिक विकलांगता है — तो भी कोशिश करनी चाहिए कि बच्चा जितना हो सके उतना अपने रोज़मर्रा के कार्यों के लिए आत्मनिर्भर बन सके।