अयान की अनोखी दुनिया: संघर्ष, स्वीकार्यता और अद्वितीय प्रतिभा

autism spectrum disorder written in Hindi using various colors

इस आलेख को राशि ने लिखा है। आप अमेज़न में कार्यरत हैं और ऑस्टोजेनेसिस इम्परफ़ेक्टा नामक एक स्थिति से प्रभावित हैं। इस स्थिति से प्रभावित व्यक्ति की हड्डियाँ बहुत कमज़ोर रहती हैं और हल्के से दबाव में भी चोटग्रस्त हो जाती हैं।

शादी के चार साल बाद, घर में प्यारा-सा बेटा हुआ था। दोनों पति-पत्नी अपने घर आई नई ज़िंदगी से जुड़े अनेक सपने सजा रहे थे। पूरा परिवार बेहद खुश था। दादा-दादी, बुआ, सभी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। आखिर घर में पहला बच्चा हुआ था। घर आई इस ख़ुशी का नाम रखा गया ‘अयान’।

परमात्मा की कृपा से बच्चा एकदम स्वस्थ था। देखते-देखते दो साल निकल गए। अयान पूरे घर में दौड़-भाग करने लगा। दादा-दादी के साथ खेलता, खूब मस्ती करता। उसके अंदर बहुत ऊर्जा थी, कभी थकता ही नहीं था। कभी इस कमरे में जाता, फिर दूसरे पल किसी दूसरे कमरे में। कभी कोई खिलौना उठाया तो, अगले ही पल कोई दूसरा। किसी एक खिलौने पर पल-भर भी नहीं ठहरता, अगले ही पल दूसरा खिलौना उठा लेता फिर अगले पल तीसरा। घर वालों को लगता, अयान कितनी जल्दी एक खिलौने से ऊब जाता है। वह बहुत मनमौजी था, उसका मन होता तो हँसता, पर अगर मन नहीं होता तो मजाल है कोई उसे हँसा पाए!

ये सब बातें सामान्य ही थीं, पर धीरे-धीरे सभी का ध्यान इस ओर गया कि वह कभी किसी से आँखें नहीं मिलाता था। उसका नाम पुकारने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता था। उसके कानों या आँखों में कोई समस्या नहीं थी, क्योंकि उसे तो गाने सुनना और देखना बहुत पसंद था।

जब थोड़ा और बड़ा हुआ और इन छोटी-छोटी बातों में कोई सुधार नहीं दिखा तो डॉक्टर को भी दिखाया। उन्होंने कुछ दवाइयाँ दीं, कुछ थेरेपी शुरू की। अयान अब तीन साल का हो गया था और वह जो भी बोलता था वह किसी समझ ही नहीं आता था। इसलिए उसकी स्पीच थैरेपी शुरू की गई।

यह सोचकर स्कूल में दाखिला भी कराया गया कि ज्यादातर बच्चे स्कूल जाकर ही बोलना शुरू करते हैं। पर उसमें इतनी अधिक ऊर्जा थी कि एक अध्यापक का उसे संभाल पाना बेहद मुश्किल था। वह इतना अधिक भागता-दौड़ता था, एक जगह टिकता ही नहीं था। बड़ी मुश्किल से उसे स्कूल में रोका जाता था। आश्चर्यजनक बात यह थी कि वह पहला बच्चा रहा होगा जो स्कूल के पहले दिन ज़रा भी नहीं रोया। रोना तो दूर, उसने स्कूल छोड़ने आए माता-पिता को पलटकर भी नहीं देखा। स्कूल में भी पूरा दिन वह बस इधर-उधर भागता रहा, किसी भी साथी के साथ एक पल को ठहरा नहीं, न ही उनके साथ खेलने में कोई रुचि दिखाई। इतने बच्चों के बीच उसका व्यवहार ऐसा था मानो उसके आस-पास कोई है ही नहीं। वह अकेला ही इधर-उधर कुछ ना कुछ करता रहा।

अयान के माता-पिता उसे कई डॉक्टरों को दिखा चुके थे। कोई ऊर्जा को नियंत्रण करने की दवा देता, कोई दिमाग शांत रखने की, कोई कहता कि स्पीच थैरेपी शुरू करो, कोई मनोचिकित्सक को दिखाने की सलाह देता। मनोचिकित्सक को भी दिखाकर कोई उपाय नहीं मिल सका। देखते-देखते अयान पाँच साल का हो गया। माता-पिता अब बहुत निराश हो चुके थे। बहुत प्रयास के बाद भी वे यह समझ ही नहीं पा रहे थे कि उनके बेटे के साथ क्या समस्या है। अयान शरीर से एकदम स्वस्थ था, भाग-दौड़ करता था, स्कूल भी जाता था। प्रत्यक्ष रूप से सब सामान्य होकर भी सब सामान्य नहीं था।

जैसे-जैसे अयान की उम्र बढ़ रही थी कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आने लगीं। पाँच वर्ष की उम्र में उसने इतने अच्छे से पढ़ना-लिखना सीख लिया। फिर चाहे वह हिन्दी के शब्द हों या अंग्रेजी के, पर उसकी लिखावट में एक भी ग़लती नहीं होती थी। इतना साफ़ और सुंदर लिखता कि क्या कहना। और सिर्फ इतना ही नहीं, अगर जा रहे हों तो रास्ते में जो भी लिखा हुआ मिलता वह सभी कुछ घर आकर उसी क्रम में लिख देता था जिस क्रम में वे नाम रास्ते में पड़े थे।

एक बार तो क्या हुआ, अयान और उसके माता-पिता रात के भोजन के बाद, अपनी बिल्डिंग के नीचे टहलने आए थे। जल्दबाज़ी में दोनों ही अपना फ़ोन लाना भूल गए। उन्हीं दिनों में वे कहीं और भी घर ढूंढ रहे थे तो रास्ते में उन्हें एक बोर्ड दिखा जिसमें नई कॉलोनी की जानकारी थी, और साथ ही अधिक जानकारी के लिए एक फोन नंबर भी था। परन्तु उनके पास न फोन था न कागज़-कलम – पर उनके पास था हमारा प्यारा-सा अयान। उन्होंने अयान को बोला, “अयान, ये नंबर पढ़ लो।” बस फिर टहलकर जब वे अपने घर आए तो उन्होंने अयान से कहा, “वो नंबर लिखो जो नीचे पढ़ा था।” उसने वह नंबर बिल्कुल सही लिख दिया।

यह किस्सा बताने का उद्देश्य बस इतना था कि अयान का मस्तिष्क इतना तेज था, वह कुछ भी एक बार देखता या पढ़ता था तो बिल्कुल वैसा ही लिख देता था। यहाँ तक कि कोई भी फिल्मी गाना उसने पहली बार भी सुना तो वह भी वह पूरा लिख देता था। गाने सुनना उसे इतना अधिक पसंद था कि गाने सुनाकर उससे कोई भी काम कराया जा सकता था।

एक बात चिंताजनक थी — अयान में भावनाएँ नहीं थीं। उस पर डाँट का या प्यार का कोई असर नहीं होता था। चाहे उसे प्यार करो या डाँट लगा दो, उसका व्यवहार सामान्य रहता ही था – जैसे कुछ हुआ ही नहीं। हाँ, कभी मन का न होने पर थोड़ा गुस्सा ज़ाहिर करता था, सबसे नहीं पर ख़ुद से अपने में बातें भी करता था; पर क्या कहता था, यह किसी को समझ नहीं आता था।

आज अयान दस वर्ष का हो गया है। इतने इलाज और थेरेपी से पता नहीं कितना फर्क पड़ा। पर माता-पिता और जो भी लोग अयान को जानते हैं, उन्होंने अयान को वैसा ही स्वीकार कर लिया है जैसा वह है। कुछ लोग आज भी इधर-उधर दिखाने की सलाह देते हैं या कुछ उसकी समस्या को न समझते हुए, उस पर सख्ती करने की सलाह भी दे देते हैं। बहुत कम लोग हैं जो उसकी समस्या न देखकर उसमें खूबियां देखते हैं कि कैसे उसका दिमाग वाकई कंप्यूटर से भी तेज़ है। फिर चाहे वह कठिन गणित का सवाल हो या अंग्रेज़ी भाषा, वह हर विषय में माहिर है। अब तो वह अपने स्कूल में हिन्दी और अंग्रेजी की हर वर्ष छपने वाली मैगजीन भी टाइप करता है। हिन्दी की टाइपिंग उसे कभी किसी ने नहीं सिखाई पर पता नहीं कैसे वह बिना कीबोर्ड देखे सिर्फ हिंदी में लिखे पन्ने देखकर पूरी की पूरी किताब मिनटों में कंप्यूटर पर छाप देता है।

डॉक्टर अयान की इतनी सारी खूबियों को ऑटिज्म का नाम देते हैं। पर अयान दुनिया के दिए नामों से अनजान अपनी ही दुनिया में ख़ुश है। और सही मायने में जीवन वही सार्थक है जब व्यक्ति अंदर से ख़ुश हो।

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Shivani
Shivani
4 months ago

बेहतरीन 👏👏👏👏👏👏

AGNA
AGNA
4 months ago

मैम, क्या लिख दिया आपने, शब्द नही मिल रहे तारीफ के लिए। मानो जैसे एक लघु चलचित्र चल रहा था पढ़ते समय।

Bharti
Bharti
4 months ago

बहुत खूब, राशि👍🏻

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