दंगा
दंगा करने से किसी की रक्षा नहीं होती केवल जन और अंग क्षति ही होती है। हमारे अंगों की खाद और हमारे रक्त से इन नेताओं और भविष्य के नेताओं के राजनीति वृक्ष को हम कब तक पोषित करते रहेंगे? बेरोजगार युवा दंगे में शामिल होकर कब तक विकलांग बनते रहेंगे?
दंगा करने से किसी की रक्षा नहीं होती केवल जन और अंग क्षति ही होती है। हमारे अंगों की खाद और हमारे रक्त से इन नेताओं और भविष्य के नेताओं के राजनीति वृक्ष को हम कब तक पोषित करते रहेंगे? बेरोजगार युवा दंगे में शामिल होकर कब तक विकलांग बनते रहेंगे?
निकलस पूरन जिन्हें बचपन में हुए एक हादसे के बाद डॉक्टरों ने यह कह दिया था कि अब शायद ही कभी अपने पैरों पर चल सकेंगे वे निराश हो जाते तो आज दुनिया के सबसे विस्फोटक बल्लेबाजों में उनका नाम नहीं होता और वेस्टइंडीज टीम के कप्तान नहीं बन पाते।
कविता कोश, गद्य कोश, WeCapable.com, दशमलव यूट्यूब चैनल और viklangta.com के संस्थापक सम्यक ललित के साथ मेरा साक्षात्कार
अगर बात आम लोगों की करें तो दिव्यांग तो दूर कोई विकलांग कहकर भी संबोधित नहीं करता है विकलांगजन को। लंगड़ा, अंधा, काणा, बहरा, पगलैट, टुंडा, गूंगा, हकला, जैसे उपहासजनक शब्दों का प्रयोग किया जाता है विकलांगों के लिए।
एक बाजू कम होने से ज़िंदगी कम हुई? लोगों की बातों से ज़रूरतें पूरी हो जाती हैं? बिना जोख़िम उठाए जिया जा सकता है? जबकि साँस लेने में भी आजकल जोखिम है।
विकलांग व्यक्तियों के साथ ऐसा होते बहुत ज्यादा देखा जाता है। इलाज के नाम पर किए जाने वाले झाड़-फूँक, टोने-टोटके फ़िल्म में काल की तरह असंभव को संभव करने की हमारी सनक नहीं तो और क्या है?
अफसोस कि दुनिया में रहकर भी वह चारों तरफ अजनबी-सा तकता है। तुम्हारे इस कुशाग्र बुद्धि जीव को तुम्हारी भी कोई खबर नहीं। क्या तुम भी भूल गए हो उसे? इतनी भी क्या बेखबरी? कहलाते तो सर्वज्ञाता हो।
एक-एक कर उनकी सेवा समिति की 6 एम्बुलेंस शहर भर में घूमने लगी हादसों में गिरे लोगों को तुरंत हस्पताल पहुँचाने के लिए। उनके द्वारा स्थापित भाई कन्हैया जी सेवा समिति (अब जो भाई कन्हैया जी मानव सेवा ट्रस्ट है) द्वारा आश्रम चला दिए जहाँ लावारिस बेसहाराओं को रिहायश, दवाएं, भोजन और कपड़े मुहैया कराए जाते।
आदत रूपी विकलांगता बहुत व्यापक असर रखती है। अक्सर इसका निदान अपने ही पास होता है जैसे कि समय-समय खुद ही खुद को जाँचते रहना कि कहीं हमारी आदतें लत तो नहीं बन रही।
वैसे तो इस व्हीलचेयर क्रिकेट मैच में सब कुछ था लेकिन दर्शकों का अभाव बहुत था। आयोजकों, प्रायोजकों, और आमंत्रित अतिथिगण को मिलाकर मुश्किल से 250-300 लोग ही होंगे।
अगर सोसाइटी के शिखर पर ही पकड़ बनाने की कोशिश की जाए तो क्या मुमकिन नहीं हो सकता। हो सकता है सच में कोई विदेशी नामचीन नेता कह उठे – ‘अ प्राइमनिस्टर ऑन व्हील्स’।
विकलांगता केवल उदासी, अकेलेपन, मजबूरी, और बेचारगी नहीं होती। उससे कहीं आगे की यात्रा होती है। विकलांगों को अजीब नजरों से देखना बंद कीजिए, उन्हें दोस्त की तरह अपना कर देखें।
पिछले किसी जन्म में तुम भी इसके (विकलांग) किए गुनाहों में सहभागी थे इसलिए तुम भी सज़ा के बराबर हकदार हो। तुमने इसके किए गुनाह में ऐसे साथ दिया इसलिए तुम इसकी माँ बनी, तुम फलां तरीके से जुर्म में शामिल थे इसलिए तुम इसके पिता हो। इसकी सेवा तुम्हारे हिस्से आई है तुम्हारा जन्म सफल हुआ समझो।
अब जब भी कोई कहीं इस शब्द से संबोधित करता है तो मन करता है कि उससे कहूँ कि अगर इसे दिव्यता कहते हैं तो आइये आप भी इस दिव्यता को जी कर देखिए।
खुद पर खुद का बोझ ज़ब नहीं होता। आवाज़ सुनकर जवाब देना मुश्किल लगता है तो जीवन भर के सन्नाटों को जीने वालों से क्या कहेंगे? किसी आवाज़ को आवाज़ से जवाब दे सकना इतना भी मुश्किल नहीं होता।