अपने दोस्तों और दोस्ती कैसे निभाई जाती है, मैं आज इसी के बारे में लिख रहा हूँ। मेरे जीवन मे दोस्ती का एक विशेष स्थान है जिसे मैं बहुत संभाल कर रखता हूँ। वैसे तो मेरे दोस्त गिने-चुने है किन्तु जितने भी है वे बेशकीमती हैं। मैं अपने दोस्तों पर तो एक पूरी किताब लिख सकता हूँ कि उन्होंने मेरी विकलांगता के दौरान किस-किस तरीके से मेरी मदद की, फिर मदद चाहे मानसिक रही हो, शारीरिक रही हो या फिर आर्थिक-रूप से रही हो।
मैं पिछले 13-14 साल से स्पाइनल कॉर्ड इंजरी का एक पेशेंट हूँ। फ़िलहाल मैं दो वर्ष पहले हुई मेरी स्पाइन सर्जरी के वक़्त दोस्तों द्वारा की गई मदद के बारे मे बताना चाहूँगा।
कई समस्याओं (जिनका अभी ज़िक्र नहीं कर पाऊँगा) के कारण मैं अपने स्वास्थ्य का ख़्याल नहीं रख पा रहा था। इसकी वजह से मुझे ऑफिस का काम करते समय थकावट रहती थी और घर लौटते-लौटते मुझे बुख़ार आ जाता था। मैंने कई अस्पतालों में अपने शरीर की जाँच कराई लेकिन कोई आराम नहीं मिला। मुझे कभी-कभी लगता कि मैं जब बैठता हूँ तो हल्का-सा झुकने लगता हूँ। समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। आखिरकार मुझे पिताजी को घर से बुलाना पड़ा। उन्होंने भी कई शहरों मे मेरा इलाज करवाया लेकिन कोई भी आराम न मिलते देख वे मुझे घर ले गए। कई बड़े प्राइवेट अस्पतालों में लगातार 3-4 महीने इलाज कराने के कारण हमारी आर्थिक स्थिति भी बिगड़ गई लेकिन हमें क्या पता था कि अभी तो यह बस शुरुआत थी।
पिछले 8-10 साल से मेरा इलाज दिल्ली के एक बड़े प्राइवेट अस्पताल में चल रहा है। वर्तमान में मैं उसी अस्पताल से ट्रीटमेंट लेता हूँ। घर आने के पाँच दिन बाद मेरी हालत बहुत ख़राब हो गई मैं लगभग अचेतन कि स्थिति मे रहने लगा था। हर समय बुखार रहता था। कोई डॉक्टर समझ नहीं पा रहा था कि प्रॉब्लम कहाँ है। पापा ने दिल्ली चलने कि तैयारी कर ली। साथ मे मेरे चाचाजी थे। हम तीन लोग और ड्राइवर रात को दिल्ली के लिये निकले और सुबह हम दिल्ली के उस अस्पताल में पहुँच गए।
डॉक्टर नंदा ने मेरा चेकअप किया और जैसे ही उन्होंने मेरी स्पाइन को टच किया उनको कुछ अंदेशा हुआ और मुझे सीधे MRI रूम मे भेज दिया। तीन-चार घंटे इंतज़ार के बाद मेरी MRI हुई, रिपोर्ट आई तो मुझे स्पाइनल tuberculosis निकला। एक बार को मुझे समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या है। डॉक्टर ने बोला कि आपकी रीढ़ की हड्डी का एक मनका (स्पाइनल beed) टूट गया है। तुरंत सर्जरी करनी पड़ेगी नहीं तो आप पूरी तरह झुक जाओगे और बैठना बंद हो जायेगा। आपको हमेशा लेटे रहना पड़ेगा। हम पहले ही आर्थिक रूप से कमज़ोर हो चुके थे। अब डॉक्टर द्वारा तुरंत सर्जरी के लिये बोलना और सर्जरी के लिए एक ऐसा अमाउंट बताना जो हमारे लिए उस समय afford करना नामुमकिन था। हमने कुछ दिनों का समय मांगा और वहाँ से घर वापस आ गए। डॉक्टर ने कुछ tb कि दवाई दी और बोला इनको कभी स्किप मत करना।
हम लोग पैसों के इंतज़ाम मे लग गए। अमाउंट ज्यादा था और इतनी जल्दी रकम कहाँ से आये क्योंकि पिछले 3-4 महीने से इलाज के दौरान पैसा पानी कि तरह बहा था। कहीं से कोई सपोर्ट नहीं मिल पा रहा था तो मैंने अपने दोस्तों से आर्थिक मदद करने के लिये बोला। मेरे दोस्त अन्नू ने तुरंत पैसों का इंतज़ाम कर दिया जिससे हमें कुछ राहत मिली। फिर पिताजी ने जो थोड़ी खेती थी उसको बेच दिया थोड़ा ताऊजी ने मदद की और ऐसे पैसों का इंतज़ाम हुआ। यहाँ सबसे पहले मेरा दोस्त ही था जिसने बोला टेंशन मत लो भाई मैं कही न कही से पैसों कि व्यवस्था कर दूँगा और उसने कर भी दी। दवाइयों का असर हो रहा था मुझे फीवर आना लगभग बंद हो गया था लेकिन मनका टूटने के कारण मेरा बैठना लगभग बंद-सा हो गया था तो सर्जरी तो करानी ही थी। मैंने डॉक्टर को कॉल करके सर्जरी के लिए अपॉइंटमेंट ले लिया।
इस बार मैंने अपने दोस्तों से साथ चलने के लिए बोला। मेरा दोस्त मनोज, पापा, पप्पू चाचा मेरे साथ गए और श्याम, विकाश, अभिषेक सर्जरी वाले दिन पहुँच गए थे। वहाँ दिल्ली में जॉब कर रहा मेरा दोस्त आयुष भी सर्जरी वाले दिन आ गया था। चूंकि मैं बहुत कमज़ोर हो गया था तो सर्जरी से पहले उन्होंने मुझे ब्लड प्लाज़्मा की 3-4 ड्रिप लगाई थी। प्रॉब्लम ये थी कि उनको ब्लड के बदले ब्लड ही चाहिए कोई पैसा नहीं चाहिए था। मेरे सभी दोस्त ब्लड डोनेशन के लिए तैयार हो गए और मेरे भाई और दोस्तों ने ब्लड डोनेट किया और वह ब्लड अस्पताल के ब्लड बैंक मे जमा कर दिया गया। यहाँ भी मेरे दोस्त ही थे जिन्होंने सबसे पहले मेरा साथ दिया। जब मैं OT में गया तो मेरे सारे दोस्त मेरे साथ गए। पापा चाचा तो OT में जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाए।
नौ घंटे मेरी सर्जरी चली। जब मुझे होश आया तो डॉ. नंदा मेरा हाथ पकड़े हुए थे और कुछ बोल रहे थे। मुझे उनकी आवाज़ बिल्कुल समझ नहीं आ रही थी, मुझे लग रहा था कि मैं उनसे बात कर रहा हूँ किन्तु वे कह रहे थे कि तुम बस बड़बड़ बड़बड़ कर रहे थे। उसके बाद मुझे 24 घंटे के लिए ICU में शिफ्ट किया गया। फिर कुछ दिनों के बाद मुझे डिस्चार्ज कर दिया गया। डिस्चार्ज के दिन आयुष, विकाश और मेरे भाई ने मुझे एम्बुलेंस में शिफ्ट किया और हम दिल्ली से घर आ गए।
घर आने के बाद भी मेरे दोस्तों ने मेरा साथ दिया। वे मुझे व्हीलचेयर पर घुमाने ले जाते, समय-समय पर प्रोत्साहन देते — इन सब बातों को एक लेख मे लिख पाना मुश्किल है।
यह तो मेरी जीवन की कहानी का एक छोटा-सा किस्सा था जिसमें कई ऐसे और भी किरदार भी थे जिन्होंने मेरी बहुत मदद की लेकिन आज बस दोस्ती पर लिखने का मन था।
जीवन में अगर कोई सबसे सुन्दर और नि:स्वार्थ रिश्ता है–तो वह “दोस्ती” का ही है।
लोकेन्द्र जी आप बहुत भाग्यशाली हैं, जो आपके पास कई सच्चे दोस्तों की सच्ची दोस्ती है।
यदि जीवन में सच्चे दोस्तों का साथ हो तो जीवन के हर मुश्किल पल निकल जाते हैं। आपके साथ आपके दोस्तों का साथ हमेशा बना रहे।
आपको बेहतर स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाऐं। 🙏
लोकेन्द्र आपने बहुत अच्छा लिखा है👌🏻♥️
ऐसा लगा मानो कोई कहानी आँखों के सामने चल रही है और दोस्ती तो है ही कमाल का तोहफा जो कई बार खून के रिश्तों से भी बढ़कर निकलता है।
मित्रों की आवश्यकता तो स्वयं भगवान राम को भी पड़ी हम तो मनुष्य मात्र हैं। जीवन में मित्रो का होना बोहोत जरूरी है, आज के समय में बिना स्वार्थ भाई–भाई के काम नहीं आता परंतु मित्र हर परिस्थिति में साथ होता है। मैं ऐसा महसूस करता हूं की जहां परमेश्वर स्वयं नही उपस्थित हो सकते हैं वहा वो हमारे मित्रों को भेजते हैं।
बहुत ही सराहनीय लेख, दोस्तों की ऐसी दोस्ती को नमन