विकलांगता के कारण सहकर्मी मेरे साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते

equal rights for persons with disabilities

अनाम व्यक्ति: आज के समय में किसी भी विकलांग व्यक्ति के जीवन में सबसे बड़ी समस्या रोजगार ही है। ऐसा हमें लगभग सभी मंचो पर देखने अथवा सुनने को मिलता है, इस समस्या का निदान पाने हेतु ज्यादातर विकलांग मित्र किसी न किसी सरकारी नौकरी को पाने के लिए प्रयासरत भी रहते हैं। हमें ऐसा लगता है कि एक बार ऐसी कोई नौकरी लग जाए तो जीवन की ज्यादातर समस्याएँ खत्म हो जाएँगी। परंतु कभी क्या किसी ने ये विचार किया है अथवा जानने का प्रयास किया है कि नौकरी लगने के बाद विकलांगों के साथ कैसा व्यवहार होता है?

हम चाहे कितना भी बेहतर काम करते हों, अथवा हमारे सभी टारगेट पूरे करते हों, पदोन्नति में विकलांगता हमेशा आड़े आती ही है, कभी ये सोचते हुए कि हम अधिक कार्यभार नही ले पाएंगे तो कभी कुछ अन्य कारण से।

उच्च अधिकारी जान-बूझ कर हमे ऐसे कार्यों की जिम्मेदारी देते हैं जिन कार्यों को करने में न तो हमें कुछ नया सीखने को ही मिलता है और न ही हमारी पदोन्नति में ही सहायक होता है। इसके अलावा विकलांग व्यक्ति को मित्र बनाने में समस्या तो हमेशा होती ही है, कार्यक्षेत्र में भी हमारे मित्र आसानी से नहीं बन पाते।

ज्यादातर साथी कर्मचारी अपना-अपना समूह बनाकर ही रहते हैं, परंतु हमें कोई भी अपने समूह में सम्मिलित नहीं करता, सिवाय उन कर्मचारियों के जो लगभग सेवानिवृत्त होने वाले हैं। प्रारंभ में जब वेतन आता है तो सच में बहुत अच्छा लगता है, परंतु कर्मचारियों से भरे हुए कार्यालय में भी हम अकेले ही होते हैं। और यदि वहाँ कोई हमारे साथ सहानुभूति जैसा व्यवहार करने लगे, अथवा हमें ये एहसास करवाए कि ये वाला कार्य मैं कर देता हूँ आपको इसे करने में समस्या होगी, तब तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम बस किसी न किसी की दया पर ही निर्भर हैं। हम उस व्यक्ति को कुछ कह भी नही सकते क्योंकि देखा जाए तो वो बस अपना मानव धर्म ही निभा रहा है। परंतु समय के साथ ऐसा माहौल हमें मानसिक अकेलेपन में डाल देता है।

इस समस्या को हल करने का कोई तरीका ही समझ नही आता, मैं स्वयं हमेशा दूसरे कर्मचारियों से घुलने मिलने का प्रयास करता रहता हूँ, कभी अपने कुछ अनुभव उनसे साझा करता हूँ तो कभी कुछ और। परंतु अधिकतर यह एक तरफा संवाद मात्र बनकर ही रह जाता है।

मुझे इस समस्या से निदान के लिए आपके अमूल्य सुझाव अवश्य दीजियेगा।

विकलांगता से जुड़ी अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को शेयर करें। आपको अपनी पहचान बताने की आवश्यकता नहीं है।

सम्यक ललित: सबसे पहले तो आपका धन्यवाद कि आपने अनाम संदेश सुविधा का उपयोग करते हुए अपनी समस्या सामने रखी।

कार्यस्थल पर सहकर्मियों के साथ अच्छे सम्बंध होना एक बड़ी नेमत है। ऐसा बहुत कम होता है कि किसी व्यक्ति के अपने सभी सहकर्मियों के साथ सम्बंध अच्छे हों। अपने व्यक्तिगत अनुभव की बात करूँ तो सरकारी दफ़्तरों में सहकर्मियों के बीच आपसी खींचतान अधिक रहती है। प्राइवेट ऑफ़िसों में लोग आते-जाते रहते हैं — ये जगहें एक बहती नदी की तरह होती हैं जहाँ पानी लगातार बहता रहता है। इसलिये लोगों के बीच के खराब सम्बंध भी लोगों के साथ ही आते-जाते रहते हैं। सरकारी ऑफ़िसों में लोग बहुत लम्बे समय तक काम करते हैं इसलिये सम्बंध भी वहाँ अपेक्षाकृत अधिक जटिल होते हैं।

एक विकलांग व्यक्ति के लिये अपना महत्त्व साबित करना अन्य लोगों की तुलना में कहीं अधिक मुश्किल काम है। जैसा कि अनाम व्यक्ति ने बताया, कई बार लोग आपके महत्त्व को केवल इसलिये स्वीकार नहीं करते क्योंकि आपको एक वयस्क, योग्य और ज़िम्मेदार व्यक्ति की तरह देखने की बजाय वे आपको एक “बच्चे” की तरह देखते हैं। एक बच्चा जिसे कुछ नहीं आता, जिसकी राय का कोई महत्त्व नहीं है, जिसका ध्यान रखे जाने की आवश्यकता है। विकलांग व्यक्ति का यह “शिशुकरण” भारतीय समाज में एक आम बात है।

विकलांगता के साथ जीवन बिताते हुए जितना मुझे समझ में आया है वह बस यही है कि एक विकलांग व्यक्ति को लगातार अपनी उपलब्धियों और योग्यताओं को बढ़ाना पड़ता है — मरते दम तक। अपने महत्त्व, अपनी उपलब्धियों और अपनी योग्यताओं को इतना अधिक बढ़ा दीजिये कि किसी के भी लिये उन्हें नज़रअंदाज़ करना असंभव हो जाये। उपलब्धियों के मामले में अपने सहकर्मियों से इतना आगे निकल जाइये कि वे आपको छू भी न सकें — लेकिन फिर भी अपने व्यवहार में विनम्रता बनाए रखें। तब देखियेगा, लोग आपके आस-पास स्वयं ही आना चाहेंगे।

अपने सहकर्मियों के साथ मधुर सम्बंध बनाने के लिये आप निम्नलिखित काम कर सकते हैं:

1) उनके जन्मदिन या अन्य महत्त्वपूर्ण दिनों पर उन्हें सबसे पहले शुभकामनाएँ दें। यदि एक छोटा-सा केक या उपहार भी दे सकें तो वह व्यक्ति हमेशा इस बात को याद रखेगा और आपके साथ मित्रता का अनुभव करेगा।

2) कभी घर में खाने में कुछ स्पेशल बना हो तो सहकर्मियों के लिये ले जाएँ।

3) कुछ नया सीख कर उसे अपने सहकर्मियों को भी बताये कि इससे उनका काम कितना आसान हो सकता है। (उदाहरण के लिये Excel का कोई फ़ॉर्मुला)

4) सहकर्मियों के साथ लंच अवश्य करें। काम के बीच वही एक समय होता है जब आपसी बॉन्डिग की बातें होती हैं।

5) अपने चुनिंदा सहकर्मियों की रुचि को समझने की कोशिश करें। यदि किसी को पढ़ने का शौक है तो उसे कोई ऐसी पुस्तक गिफ़्ट करें जो आपने भी पढ़ी हो और आपको अच्छी लगी हो।

6) अपनी जानकारी को हर दिशा में बढ़ायें। बिना जानकारी के आप किसी समूह की बातचीत में हिस्सा नहीं ले पाएँगे। मैं अपने बारे में यह मानता हूँ कि मैं लगभग हर विषय पर बात कर सकता हूँ। इसलिये हर किसी को ऐसा लगता है जैसे कि मैं उसी की तरह हूँ! आप यदि अपनी जानकारी को विस्तार नहीं देंगे तो आप अलग-थलग हो ही जाएँगे — आपको विकलांगता हो या न हो।

7) अपने सहकर्मियों की कभी-कभार प्रशंसा भी करें — “क्या बात है गुप्ता जी, आज तो आप जँच रहे हैं!” — इस तरह का एक वाक्य उस व्यक्ति का दिन बना देगा और उसके मन में आपके प्रति मैत्री का भाव आएगा। कोशिश करें कि आपकी प्रशंसा सच्ची हो और मन से निकले।

8) हर किसी से मुस्कुरा कर मिलें। मुस्कान बहुत-सी समस्याओं का हल होती है।

9) जब भी संभव हो अपने सहकर्मियों की उनके काम में मदद कर दें — लेकिन ध्यान रहे, उन्हें इस चीज़ की आदत न डालें।

10) कभी किसी की चुगली न करें। इधर की बात उधर करने से आप सहकर्मियों के नज़र में विलेन बन जाएँगे। सब की सुने और सुन कर अपने तक ही रखें।

आपके लिये मेरी ओर से ये दस सुझाव हैं। आशा है कि इनसे आपको अपनी समस्या सुलझाने में मदद मिलेगी।

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चंचल हरेंद्र वशिष्ट
चंचल हरेंद्र वशिष्ट
7 days ago

सभी विचारों का स्वागत एवं अभिनन्दन 🙏, सराहनीय सोच! मूक-बधिरों की समस्या जो कि समाज में सामान्यतः समस्या नहीं दिखती , उसके लिए क्या करें 🙏

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