हॉरिजॉन्टल और वर्टीकल आरक्षण का पारस्परिक सम्बन्ध कई विकलांग अभ्यर्थियों के लिए दुविधा और भ्रम का बहुत बड़ा विषय है। मैं विकलांग की श्रेणी में आऊँगी या महिला की? क्या मैं अनुसूचित जाति के आरक्षण का पात्र हूँ या फिर बेंचमार्क विकलांगता का? यदि आपके मन में भी आरक्षण और विशेष लाभों को लेकर ऐसी कोई दुविधा या सवाल है तो इस पूरे आलेख को ध्यान से पढ़िए।
वर्टीकल और हॉरिजॉन्टल आरक्षण की परिभाषा
इससे पहले कि हम हॉरिजॉन्टल और वर्टीकल आरक्षण की उलझी हुई गुत्थी को सुलझाने की कोशिश करें दोनों की परिभाषाओं को समझ लेना बहुत ज़रूरी है।
वर्टीकल आरक्षण (ऊर्ध्वाधर आरक्षण) – आरक्षण की यह श्रेणी सामाजिक-रूप से पिछड़ी जातियों के लिए है। इसी आरक्षण श्रेणी के अंतर्गत पिछड़ा, अति-पिछड़ा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों को आरक्षण दिया जाता है।
हॉरिजॉन्टल आरक्षण (क्षैतिज आरक्षण) – यह आरक्षण की वह श्रेणी है जिसके अंतर्गत समाज के अन्य वंचित समूह जैसे कि महिलाओं और विकलांग व्यक्तियों को आरक्षण दिया जाता है।
वर्टीकल और हॉरिजॉन्टल आरक्षण का परस्पर सम्बन्ध
यह स्पष्ट है कि कई मामलों में अभ्यर्थी, वर्टीकल और हॉरिजॉन्टल, दोनों ही आरक्षण की श्रेणी में आ सकते हैं। इसी जगह से दुविधा शुरू होती है कि कोई व्यक्ति यदि वर्टीकल और हॉरिजॉन्टल दोनों आरक्षण श्रेणियों में आता हो तो उसकी किस श्रेणी को अधिक महत्ता दी जाएगी?
जनवरी 2021 में ‘सौरव यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सरकार’ मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने इस दुविधा को समाप्त करते हुए यह साफ़ निर्देश दिया कि वर्टीकल और हॉरिजॉन्टल आरक्षण में आने वाले अभ्यर्थियों को दोनों ही श्रेणियों का लाभ दिया जाना चाहिए। न्यायालय के अनुसार हॉरिजॉन्टल आरक्षण प्रत्येक वर्टीकल श्रेणी में दिया जाना चाहिए।
हालाँकि यह मामला विकलांगता श्रेणी को लेकर नहीं था लेकिन उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले ने विकलांगता श्रेणी के लिए भी आरक्षण की बहुत-सी दुविधाएँ दूर कर दीं।
सिविल सेवा में विकलांग अभ्यर्थियों के लिए वर्टीकल आरक्षण
जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि विकलांगता आरक्षण की हॉरिजॉन्टल श्रेणी में आती है। अब हमें यह समझना है कि किसी विकलांग अभ्यर्थी को सिविल सेवा परीक्षा में वर्टीकल आरक्षण का लाभ यदि मिलता है तो कैसे मिलता है?
विकलांग अभ्यर्थियों को वर्टीकल आरक्षण श्रेणी का लाभ मिलने का अर्थ यह है कि विकलांगता किसी व्यक्ति के अन्य पहचानों को ख़त्म नहीं कर देती। यदि कोई व्यक्ति विकलांग है और अनुसूचित जाति से आता है तो वह विकलांग अभ्यर्थी भी है और अनुसूचित जनजाति का अभ्यर्थी भी। यदि कोई महिला अभ्यर्थी विकलांग है तो उसकी विकलांगता उसके महिला होने की पहचान को ख़त्म नहीं कर देती।
विकलांग अभ्यर्थियों के लिए सिविल सेवा परीक्षा में उम्र की अधिकतम सीमा में राहत
सिविल सेवा परीक्षा में बेंचमार्क विकलांगता के लिए अधिकतम 10 वर्ष की राहत दी है। चूँकि दो आरक्षण श्रेणियों में आने वाले अभ्यर्थियों को दोनों ही श्रेणी का लाभ दिया जाना है इसलिए अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विकलांग अभ्यर्थियों को उनकी दोनों ही आरक्षण श्रेणियों (विकलांगता और जाति) का संचित लाभ मिलेगा।
इसे आसान शब्दों में समझें तो सामान्य श्रेणी से आने वाले विकलांग व्यक्ति को सामान्य श्रेणी की उम्र सीमा पर 10 वर्ष का अतिरिक्त लाभ मिलता है और अनुसूचित जाति के विकलांग अभ्यर्थी को अनुसूचित जाति की उम्र सीमा पर 10 वर्ष का अतिरिक्त लाभ मिलता है।
विकलांग अभ्यर्थियों के लिए सेवा पदों पर आरक्षण
वर्टीकल और हॉरिजॉन्टल आरक्षण की अवधारणा को समझने के बाद यह भ्रान्ति हो सकती है कि सेवा पदों पर नियुक्ति के लिए भी विकलांग अभ्यर्थियों को दोनों आरक्षणों का लाभ मिल सकता है। यहाँ यह बात समझनी ज़रूरी है कि वर्टीकल और हॉरिजॉन्टल आरक्षण दोनों का लाभ परीक्षा में मिलने वाले अंकों पर तो हो सकता है लेकिन किसी पद पर भर्ती के लिए नहीं।
सिविल सेवा परीक्षा की अधिसूचना के निकलने से पहले ही उन पदों को चिन्हित कर लिया जाता है जिन पदों पर किसी ख़ास श्रेणी के विकलांग अभ्यर्थी की भर्ती हो सकती है। किसी भी बेंचमार्क विकलांगता वाले व्यक्ति को इन चिन्हित पदों के सिवा किसी और पद पर नौकरी नहीं दी जा सकती। हालाँकि वर्टीकल आरक्षण (जाति आधारित) श्रेणी के विकलांग अभ्यर्थियों को उनके वर्टीकल आरक्षण का लाभ अंक तालिका में ऊपर आने में मदद ज़रूर करता है।
विकलांग अभ्यर्थियों को सिविल सेवा परीक्षा में मिलने वाले प्रयासों की संख्या में वर्टीकल आरक्षण का लाभ
सामान्य, अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के विकलांग अभ्यर्थी उम्र की ऊपरी सीमा तक पहुँचने से पहले कुल 9 बार सिविल सेवा परीक्षा में बैठ सकते हैं। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विकलांग अभ्यर्थी उम्र की ऊपरी सीमा तक पहुँचने से पहले जितनी बार चाहें उतनी बार परीक्षा में बैठ सकते हैं।
[टिप्पणी: यदि किसी अभ्यर्थी ने सिर्फ़ परीक्षा का फॉर्म भरा लेकिन परीक्षा नहीं दी तो उस प्रयास की गिनती नहीं होगी। यदि अभ्यर्थी प्रारंभिक परीक्षा के एक सत्र में भी बैठ जाता है तो उसके प्रयास की गिनती हो जाएगी]
उम्मीद करते हैं कि विकलांग अभ्यर्थियों के लिए जाति-आधारित आरक्षण से जुड़े आपके सवालों का उत्तर मिला होगा। यदि आपके मन में अब भी कोई शंका या सवाल हो तो आप नीचे कमेंट करके अपना सवाल पूछ सकते हैं।
सामान्य श्रेणी का विकलांग व्यक्ति यदि विकलांग श्रेणी में आवेदन करता है तथा परीक्षा में किसी भी स्तर पर विकलांग आरक्षण का लाभ नहीं लेता है (परीक्षा शुल्क के अलावा)और अनरिजर्व्ड श्रेणी की कट आफ से ज्यादा अंक अर्जित करता है तो उसका चयन अनारक्षित सीट पर होगा अथवा विकलांग कोटा में (विकलांग सीट पर)