क्या ओला / उबर के ड्राइवर विकलांगजन की विशेष आवश्यकताओं के लिये प्रशिक्षित हैं?

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ओला और उबर हमारे देश में एप-आधारित-टैक्सी सेवा की सबसे अधिक लोकप्रिय कम्पनियाँ हैं। इस सेवा से लाखों लोगों को यह सुविधा मिलती है कि ज़रूरत होने पर टैक्सी आपके लिये ठीक आपके दरवाज़े पर आकर खड़ी हो जाती है। यदि आपको किसी प्रकार की विकलांगता है तब तो यह सुविधा किसी वरदान से कम नहीं लगती। पहले टैक्सी लाने के लिये आपको किसी और पर निर्भर रहना पड़ना था या फिर ख़ुद ही लम्बी दूरी चलकर टैक्सी तक पहुँचना पड़ता था। पिछले कुछ वर्षो में ओला / उबर आने के बाद यह तस्वीर पूरी तरह बदल गई है — लेकिन क्या ओला और उबर के ड्राइवर विकलांगजन और उनके सहायक उपकरणों से जुड़ी विशेष आवश्यकताओं को समझते हैं? क्या ओला और उबर इन ड्राइवरों को प्रशिक्षण देती हैं कि विकलांगजन से कैसे पेश आना चाहिये और उनके सहायक उपकरणों को कैसे संभालना चाहिये?

अपनी पहली व्हीलचेयर लिये हुए मुझे करीब दो महीने का समय हो चुका है। इस बीच मैंने व्हीलचेयर के साथ करीब 5-6 बार ओला / उबर से यात्रा की है। अभी तक जो ड्राइवर मिले उनमें से केवल एक व्यक्ति ही ऐसा था जो व्हीलचेयर के साथ असहज नहीं लगा। बाकी सभी ड्राइवर व्हीलचेयर को देखते ही असहज हुए — और उन्होनें कुछ-कुछ बोलते हुए व्हीलचेयर को गाड़ी में रखा। कई अन्य विकलांग मित्रों से बातचीत में भी यह जानने को मिला कि ओला / उबर के ड्राइवर प्रशिक्षित नहीं हैं। ज़ाहिर है कि कम्पनियाँ तो यही कहेंगी कि उन्होनें अपने ड्राइवरों को प्रशिक्षित किया है लेकिन ये कम्पनियाँ यह सुनिश्चित करना भूल जाती हैं कि वास्तव में ड्राइवर कितने प्रशिक्षित हुए हैं।

एक अन्य एप-आधारित सेवा है, अर्बन कम्पनी (जिसे पहले अर्बन क्लैप कहा जाता था)। इस एप्प के ज़रिये भी विकलांगजन को बहुत सुविधा हुई है। जैसे कि मेरे सामने एक बड़ी समस्या यह होती थी कि हमारे इलाके में कोई भी नाई की दुकान ऐसी नहीं थी जहाँ भीतर जाने के लिये सीढ़ियाँ न हों। इसलिये मुझे मुश्किल से सीढ़ियाँ चढ़ कर बाल कटवाने जाना पड़ता था। अर्बन कम्पनी आने के बाद अब मैं इस सुविधा के ज़रिये एक प्रशिक्षित व्यक्ति को घर पर ही बुला सकता हूँ और हेयर-कट ले सकता हूँ। अर्बन कम्पनी का ज़िक्र मैंने इसलिये किया है कि अर्बन कम्पनी के लोग मुझे ओला / उबर के मुकाबिले कहीं अधिक प्रशिक्षित, सभ्य और शिष्ट लगे। आज तक किसी ने भी घर आकर मुझसे मेरी विकलांगता के बारे में नहीं पूछा — मेरी ज़रूरत के अनुसार अपना काम किया और हँसते-मुस्कुराते विदा ली। अर्बन कम्पनी अपने लोगों को बेहतर तरीके से प्रशिक्षित करने में सफल रही हैं — वहीं ओला / उबर इस काम में अभी काफ़ी पीछे हैं।

एक व्हीलचेयर यूज़र को टैक्सी प्रयोग करते समय मोटे-तौर पर बस यही सहायता चाहिये कि यात्री के बैठने के बाद ड्राइवर व्हीलचेयर को ठीक से गाड़ी में रख ले और मंज़िल पर पहुँचने के बाद व्हीलचेयर को गाड़ी से निकाल कर उसे यात्री के पास पहुँचा दे ताकि यात्री कार से व्हीलचेयर पर शिफ़्ट हो सके। यदि किसी व्हीलचेयर यूज़र को गाड़ी में बैठने या उतरने के लिये कुछ सहायता चाहिये तो यह भी ड्राइवर का कर्तव्य होता है। कई लोग अन्य सहायक उपकरण, जैसे कि बैसाखियाँ, वॉकर इत्यादि का प्रयोग भी करते हैं।

एक दृष्टिबाधित व्यक्ति को आवश्यकता के अनुसार दिशा बताते हुए सुरक्षित-रूप से गाड़ी में बिठाना, उसे बीच-बीच में सूचना देते रहना कि गाड़ी कहाँ पहुँची है और मंज़िल पर सुरक्षित रूप से यात्री को गाड़ी से उतारना — बस इतना ही ड्राइवर को करना है। कुछ दृष्टिबाधित व्यक्ति गाइड डॉग का प्रयोग करते हैं। ऐसे में कुत्ते को गाड़ी में जगह देना आवश्यक है और इसमें ड्राइवर को कोई आना-कानी नहीं करनी चाहिये। गाइड डॉग दृष्टिबाधित व्यक्ति के लिये जीवन का हिस्सा होता है — एक तरह से उस व्यक्ति का एक अंग होता है।

मेरे विचार में ओला / उबर को अपने एप्स में एक विकल्प और देना चाहिये जिससे विकलांगजन उस ड्राइवर को विशेष-रूप से रेटिंग दे सकें। इस रेटिंग का आधार यह होना चाहिये कि ड्राइवर का विकलांगजन के साथ व्यवहार कैसा है और वह विकलांगजन की विशेष-आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये कितना प्रशिक्षित है।

विकलांगजन को भी अपनी ओर से ड्राइवर के लिये जितना हो सके काम को उतना आसान बनाने का प्रयास करना चाहिये। आपको अपनी व्हीलचेयर की पॉकेट में एक कपड़ा रखना चाहिये जिसे कार की सीट पर बिछाया जा सके। इस तरह कपड़े के ऊपर व्हीलचेयर रखने से कार की सीट व्हीलचेयर के पहियों के सम्पर्क में नहीं आएगी और गंदी नहीं होगी। जहाँ तक संभव हो यात्रा के लिये फ़ोल्डिंग व्हीलचेयर का ही प्रयोग करें। गाइड डॉग भी गाड़ी में बैठने के लिये भली-भाँति प्रशिक्षित होना चाहिये।

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कंचन सिंह चौहान
Kanchan
1 year ago

अब ये बात ओला या ऊबर तक कैसे पहुँचाई जाए ? सवाल यह है।

महसूस बिल्कुल यही मैंने भी किया है।

हिमांशु सिंह
हिमांशु सिंह
1 year ago
Reply to  Kanchan

ट्वीट करके पहुंचाया जा सकता है

moosa khan ashant
moosa khan ashant
1 year ago

बेहतरीन लिखा है ये बात ओला उबेर तक पहुँचनी चाहिए

हिमांशु सिंह
हिमांशु सिंह
1 year ago

सिर्फ ओला या उबर ही नहीं अपितु समाज भी नहीं तैयार है कि विकलांग के साथ कैसा व्यवहार किया जाए… यही कारण है कि आज तक मैं मूवी थिएटर नहीं गया और अंतिम बार रेल यात्रा 2010 मे किया था

नूपुर शर्मा
Nupur sharma
1 year ago

एक बार जब मैं छोटी थी तब मेरे साथ भी बस में ऐसा ही कुछ हुआ था कि किसी ने बोला मेरे जैसे लोगों को कहीं ले जाना नहीं चाहिए। घर पर ही रखना चाहिए।

Hema Gupta
Hema Gupta
1 year ago

बहुत ही सुचिंतित आलेख है हमारा सामाजिक दृष्टिकोण ही विकलांग जन की आवश्यकताओं हेतु मित्रवत नही है। इस आलेख को सामान्य लोगों द्वारा पढ़ने की अधिक आवश्यकता है।

Anu Pal
Anu Pal
1 year ago

इन बड़ी कम्पनियों से ज़्यादा सभ्य तो ऑटो रिक्शा चालक होते हैं। मैंने हमेशा ऑटो में यात्रा की है और आज तक एक भी ऐसा अनुभव नहीं हुआ जिसमें मुझे असहज महसूस हो। बड़ी कम्पनियों को अपने एम्प्लाइज में संवेदना का गुण विकसित करने की ज़रूरत है।

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