कई बार आपने लोगों को मज़ाक में, गुस्से में या फिर ऐसे ही कहते सुना होगा कि तुम इस दुनिया के नहीं किसी “दूसरी दुनिया” के हो। हम में से कई लोगों ने कभी न कभी किसी न किसी को ऐसे बोला ही होगा। ऐसा अधिकतर तब हो सकता है जब किसी व्यक्ति की जीवन शैली और उसकी स्थिति के आधार पर उसकी बातों, उसके विचारो, उसकी ज़रूरतों को कोई समझ नहीं पाता या समझना ही नहीं चाहता। तब दूसरी दुनिया का बता कर उससे किनारा कर लिया जाता है; लेकिन क्या सच में कोई दूसरी दुनिया होती है? …
कई बार लोगों से सुना तो है कि बादलों के उस पार आसमान में एक दुनिया बसती है। जहाँ पैरों के नीचे तारों की ज़मीं है। जहाँ चांद अपनी बाहों में भरकर गहरी नींद सुलाता है। क्या सच में ऐसा होता है? नहीं न …
यह वास्तविकता नहीं बल्कि कल्पनाओं की दुनिया है। कल्पनाएँ भी केवल सामान्य लोगों की। विकलांगजन की कल्पनाएँ कहाँ ऐसी होती हैं? जो चांद, तारों से सजी हों। उनकी कल्पनाएँ तो उनके जीवन की समस्याओं के समाधान खोजने से ही जुड़ी होती हैं। उनकी कल्पनाओं में हर इमारत में, हर संस्थान में रैम्प की, व्हीलचेयर की सुविधा होती है। एक फ्लोर से दूसरे फ्लोर पर जाने के लिए लिफ़्ट की सुविधा होती है। बाज़ारों से लेकर रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन आदि तक सब उनके लिए सुगम्य होते हैं। लोगों की घूरती नज़रों की जगह उसको प्यार से सराहती नज़रें होती हैं। विकलांगजन की कल्पनाओं में ऐसे इंसान होते हैं जो उनकी विकलांगता को एक तरफ़ कर उनके स्वाभाव, उनके विचारों से प्रभावित होकर उनसे कोई रिश्ता बनाते हैं या फिर नहीं बनाते हैं; न कि सिर्फ़ व्यक्ति की विकलांगता को देख उससे दूरियाँ बना लेते हो। विकलांग व्यक्ति अपनी कल्पनाओं में ख़ुद को आत्मनिर्भर व्यक्ति के रूप में देखता है न कि आत्मनिर्भरता के लिए जद्दोज़हद करते हुए एक व्यक्ति के रूप में।
यह अफ़सोस की ही बात है कि ये सब विकलांगजन की कल्पनाओं में हैं लेकिन उसकी वास्तविक दुनिया में कहीं नहीं हैं। सच तो यह है कि यह सब विकलांग लोगों की ख्वाहिशें नहीं, न ही सिर्फ़ उनकी ज़रूरतें हैं बल्कि ये हर विकलांग व्यक्ति का अधिकार हैं; जो उन्हें जाने कब मिल पायेगा?
लोगों ने तो उन्हें उनकी शारीरिक / मानसिक स्थिति के आधार पर इस दुनिया का मानने से ही इंकार कर दिया है और इस धरती पर दो अलग-अलग दुनिया बसा दी है। एक दुनिया में वे लोग रहते हैं जो शरीर और मन से स्वस्थ और सामान्य दिखते हैं। ये लोग सामान्यजन कहलाते हैं। ये हर काम को करने में, हर विषय को, हर परिस्थिति को समझने में समर्थ माने जाते हैं। हालाँकि ये अलग बात है कि अधिकांश सामान्य व्यक्ति विकलांगजन की स्थिति को समझ पाने में असमर्थ ही सिद्ध होते हैं।
दूसरी दुनिया में हम लोग (विकलांगजन) आते हैं। जिन्हें कभी सामान्य व्यक्ति कह कर पुकारा ही नहीं जाता; क्योंकि हम में से किसी के शरीर कुछ विकृत दिखते हैं तो किसी में सोचने-समझने की शक्ति कम होती है—किसी के चल पाने, उठने-बैठने, बोल पाने, खाने-पीने, सोच पाने की क्षमता सामान्य लोगों से कुछ अलग होती हैं। इस अलगपन को ही सामान्य लोगों ने “विकलांगता” का नाम दिया है और जिन लोगों के पास ये अलगपन है उन्हें सामान्य लोग “विकलांगजन” कहते हैं।
इस प्रकार इस धरती पर सामान्यजन और विकलांगजन की दो अलग-अलग दुनिया बसा दी गयी हैं। विकलांगजन सामान्य लोगों को निरंतर समझाने की कोशिश करते हैं कि विकलांगता उनके जीवन का सिर्फ़ एक हिस्सा है न कि उनका सम्पूर्ण अस्तित्व विकलांग है; लेकिन उनके लाख प्रयासों के बावजूद सामान्य लोगों को उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व में से सिर्फ़ उनकी विकलांगता और उससे जुड़ी समस्याएँ ही दिखाई देती है। सामान्य लोग यह कभी नहीं समझना चाहते कि एक व्यक्ति की विकलांगता से जुड़ी समस्याएँ वास्तव में उसकी विकलांगता की वज़ह से नहीं बल्कि समाज की मानसिक और भौतिक संरचना के कारण है।
यदि समाज की भौतिक संरचना को सामान्य लोगों के साथ-साथ विकलांग लोगों के लिये भी अनुकूलित कर दिया जाये; जैसे कि इमारतों, संस्थानों में रैम्प, व्हीलचेयर और लिफ्ट आदि की उचित व्यवस्था के द्वारा तब निश्चित ही विकलांग लोगों की 50 प्रतिशत समस्याएँ सुलझ जायेंगी। जब सामान्य लोग किसी व्यक्ति की केवल विकलांगता को ही नहीं देखेंगे; बल्कि उस व्यक्ति के व्यक्तित्व के अन्य पक्षों, जैसे उसके स्वभाव, विचारों, किसी कार्य विशेष को कर पाने की उसकी क्षमता, उसकी निपुणता आदि को भी जाने-समझेंगे, विकलांगता की अपेक्षा इन गुणों के आधार पर विकलांग व्यक्ति से रिश्ता बनाने की कोशिश करेंगें—तब बाक़ी की 50 प्रतिशत समस्याओं का समाधान भी संभव हो जायेगा।
उस समय धरती पर दो नहीं सिर्फ़ एक ही दुनिया होगी। जहाँ सबकी ज़रूरतों और अधिकारो का ध्यान रखा जायेगा। सबके साथ बिना भेद-भाव के समानता का व्यवहार किया जायेगा। तब संभावना है कि विकलांग व्यक्ति की काल्पनिक दुनिया भी सामान्य व्यक्ति की काल्पनिक दुनिया जैसी ही होगी। जहाँ वह अपनी समस्याओं के समाधान नहीं खोजेगा; बल्कि अपनी सफलताओं के नए आयाम तलाशेगा।