कल फ़ेसबुक पर मित्र संजय कुमार वैद्य ने मुझसे पूछा कि मैं ‘दिव्यांग’ शब्द को लेकर क्या सोचता हूँ। मुझसे यह प्रश्न अक्सर पूछा जाता है और मैंने विभिन्न मंचों से अपना जवाब बताया भी है। आज सोचा कि संजय भाई के प्रश्न का उत्तर फ़ेसबुक पर न देकर ‘राही मनवा’ के ज़रिये दिया जाए ताकि यह बात अधिक लोगों तक पहुँचे।
मैं आरम्भ से ही दिव्यांग शब्द के विरोध में हूँ। मेरे विचार में विकलांगजन के लिये यह कोई ‘सम्मानजनक’ शब्द नहीं है — मैं इस धारणा का भी विरोध करता हूँ कि विकलांगजन के पास किसी प्रकार की अतिरिक्त ‘शक्तियाँ’ होती हैं या दिव्य अंग होते हैं। जहाँ तक सम्मान की बात है तो सम्मान उसी का होना चाहिये जो सम्मान के योग्य है — यदि किसी विकलांग व्यक्ति ने कोई जघन्य अपराध किया है तो भी क्या उसके लिये ‘दिव्यांग’ शब्द का प्रयोग ‘सम्मान’ का सूचक होगा? और फिर क्या ‘सम्मानजनक’ शब्दों को अपमानजनक तरीके से प्रयोग नहीं किया जा सकता है?
मात्र शब्द ही सब कुछ नहीं है — शब्द से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है उस शब्द को बोलने का ढंग। बोलने के ढंग से शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं! तो क्या शब्द और बोलने का ढंग ही सब कुछ है? नहीं! इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण होता है बोलने के पीछे का भाव… भाव ही सब कुछ है।
मैं चाहता हूँ कि आमजन ‘विकलांग’ जैसे शब्दों को बोलने के तरीके और उसके पीछे के भाव को अच्छा रखें। किसी का उपहास न करें, किसी को कमतर न अनुभव कराएँ। फिर हमें कोई तथाकथित ‘सम्मानजनक’ शब्द खोजने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। विकलांगजन को किसी ग़ैर-वाजिब सम्मान की आवश्यकता नहीं है — उन्हें आवश्यकता है तो समानता के भाव की और समान अवसरों की।
मेरे लिये बचपन से ही विकलांग, अपाहिज और अपंग जैसे विशेषण प्रयुक्त हुए हैं। मैंने देखा है कि इन शब्दों का प्रयोग करते समय कुछ लोग असहज अनुभव करते हैं तो कुछ अन्य की आवाज़ में दया का भाव स्पष्ट दिखाई देता है। कुछ अन्य इन शब्दों का प्रयोग करते समय विकलांग व्यक्ति के प्रति महत्त्वहीनता का भाव दर्शाते हैं — जैसे कि उस विकलांग व्यक्ति का अस्तित्व कोई मायने ही नहीं रखता। ऐसे लोग भी मिले हैं जो इन शब्दों का प्रयोग कुछ इस तरह करते हैं जैसे कि विकलांग व्यक्ति उन पर बोझ हो। हर तरह के लोग मिलते हैं लेकिन ऐसे लोग यदा-कदा ही मिलते हैं जो इन शब्दों का सहज और निरपेक्ष भाव से प्रयोग करते हों। कोई विकलांग व्यक्ति नहीं चाहता कि आप उसके साथ बुरे तरीके से पेश आएँ — साथ ही हम यह भी नहीं चाहते कि आप हमारे लिये सम्मान की अतिशयता बरतें। बस सरल भाव से विकलांगजन को सम्बोधित करें — उनसे वैसे ही बात करें जैसे आप अन्य लोगों से करते हैं। विकलांग हो या न हो — किसी को भी सम्मान उतना ही दें जितने के वह व्यक्ति लायक है।
विकलांगजन के लिये प्रयोग होने वाले शब्दों की लम्बी सूची है — इन सभी शब्दों में मैं सबसे अधिक अंग्रेज़ी के ‘Person with Disability’ का समर्थन करता हूँ। ऐसा इसलिये है क्योंकि Person with Disability विकलांगजन को पहले person बताता है और उसके बाद यह उल्लेख करता है कि उस person को विकलांगता है। इस प्रकार अंग्रेज़ी में Person with Disability सबसे पहले व्यक्ति की बात करता है और उस व्यक्ति को अन्य सभी लोगों के समूह persons का हिस्सा बताता है। Person with Disability में person और disability अलग-अलग चीज़े हैं। इसके विपरीत हिन्दी के शब्द व्यक्ति को की अलग से नहीं बताते — विकलांग, दिव्यांग, अपाहिज जैसे शब्द व्यक्ति पर एक लेबल की तरह होते हैं और उसे अन्य लोगों से अलहदा एक अलग ही समूह का हिस्सा बताते हैं। यह ठीक उसी तरह है जैसे अंग्रेज़ी का शब्द disabled करता है।
हिन्दी भाषा के वाक्य में शब्द जिस तरह रखे जाते हैं उससे person with disability का कोई सहज, सरल व तार्किक अनुवाद मुश्किल है। हिन्दी में भी दो शब्दों को मिलाकर नया सम्बोधन बनाया जा सकता है जिसमें व्यक्ति को पहले रखा जाए — परन्तु समस्या यह है कि हिन्दी में विशेषण को पहले रखना पड़ता है।
दिव्यांग शब्द के बारे में मैं इस वेबसाइट पर भी अपने एक अन्य लेख में लिख चुका हूँ। इस लेख को आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
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अगले सप्ताह से मैं ‘राही मनवा’ को रविवार की जगह सोमवार को प्रकाशित किया करूँगा।
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बीते सप्ताह में मुझे मेरा UDID (Unique Disability ID) Card प्राप्त हो गया। यह कार्ड क्या है और इसकी आवेदन से प्राप्त होने तक की प्रक्रिया के बारे में एक अलग लेख में जल्द ही जानकारी दूँगा।
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अगले एक सप्ताह में अन्य कई वैश्विक दिवसों के अलावा 17 मई को विश्व हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप) दिवस और 18 मई को विश्व एड्स टीका दिवस हैं।
Very true
सर जिस तरह आप Person with disabilty शब्द का समर्थन करते हैं उसी तरह मैं भी अपने व अन्य विकलांगजन के लिए Differently Abled शब्द का प्रयोग करना पसन्द करती हूँ।