दिव्यांगजन शब्द का अर्थ और इसका औचित्य

sadak par rengte hue bheekh maangta ek viklang bhikhari

भारत सरकार के शासकीय शब्दकोश में एक नए शब्द का आगमन हुआ है – ‘दिव्यांगजन’! इसके शाब्दिक अर्थ की बात करें तो दिव्यांग का अर्थ होता है ‘ऐसा व्यक्ति जिसके अंग दिव्य हों’। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने एक कार्यक्रम के दौरान इस शब्द का इस्तेमाल विकलांग लोगों को इंगित करने के लिए किया और साथ ही यह घोषणा की कि अब से विकलांग या विकलांगजन शब्दों के स्थान पर दिव्यांग और दिव्यांगजन शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा। ‘विकलांग’ शब्द का अर्थ होता है ऐसा व्यक्ति जिसका कोई अंग विकल अर्थात ख़राब हो। विकलांग वह व्यक्ति होता है जिसके किसी अंग में कोई खराबी हो और वह सामान्य तरीके से काम न कर सके। विकलांग शब्द को दिव्यांग से बदल देना हास्यास्पद है।

हालाँकि इस विषय पर आगे बढ़ने से पहले मैं यह साफ़ कर देना चाहता हूँ कि मुझे माननीय प्रधानमंत्री की मंशा पर कोई संदेह नहीं है। यूँ भी हमारे देश में लोग तार्किक होने की अपेक्षा भावुक ज्यादा होते हैं। यह संभव है कि प्रधानमंत्री के इस कदम के पीछे सोच-विचार से ज्यादा भावना ही रही होगी और उन्होंने देश में विकलांगजन की स्थिति में सुधार के उद्देश्य से ही यह कार्य किया होगा। यह मुमकिन है कि उन्होंने विकलांग शब्द से जुड़े नकारात्मक भाव से हटा कर विकलांग लोगों के स्तर को ऊपर उठाने के उद्देश्य से यह घोषणा की हो। इस प्रयास में शायद उन्होंने यह ध्यान ही नहीं दिया हो कि ‘दिव्यांग’ शब्द से उन्होंने उस स्तर को इतना ऊपर उठा दिया कि विकलांग लोगों को ‘मानव जाति’ से कहीं बाहर ही कर दिया।

वैसे मुझे इस बात पर भी थोड़ा संदेह है कि प्रधानमंत्री इस शब्द को आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हों। उन्होंने दिव्यांग शब्द का इस्तेमाल एक भाषण के दौरान किया था जिसके बाद उनके राजनीतिक प्रबंधक, नौकरशाह और मीडिया ने इसे आधिकारिक आदेश की तरह लिया और इसके पालन में लग गए। फलस्वरूप दिव्यांग शब्द विकलांग लोगों को संबोधित करने का आधिकारिक शब्द बन गया।

दिव्यांग या दिव्यांगजन शब्द में आख़िर ग़लत क्या है?

दिव्यांग शब्द में क्या गलत है यह समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। जैसा कि हम पहले भी चर्चा कर चुके हैं दिव्यांग का अर्थ है ऐसा व्यक्ति जिसके अंग दिव्य हों — लेकिन विकलांगता में दिव्यता जैसी भला क्या चीज़ है? दिव्यांग शब्द तार्किक रूप से विकलांगता की स्थिति के साथ मेल नहीं खाता। दिव्यांग शब्द विकलांगता को जिस तरीके से देखने के लिए प्रेरित करता है; कोई भी आधुनिक समाज विकलांगता को उस प्रकार से नहीं देखता।

आज मैं किसी पश्चिमी देश के अपने अपने मित्र से बात करूँ तो वे इस बात कि खिल्ली ही उड़ायेंगे कि मेरे देश में मेरी विकलांगता के कारण मुझे दिव्यता के ओहदे पर रखा जा रहा है। किसी भी आधुनिक सोच वाले इंसान और समाज के लिए विकलांगता मनुष्य जीवन का एक प्राकृतिक हिस्सा है — विकलांगता में कोई देवत्व या दिव्यता वाली बात नहीं है।

युगों-युगों से भारत में विकलांग लोगों को ईश्वर को प्रसन्न करने के एक साधन के रूप में देखा जाता रहा है। यह आम धारणा है कि विकलांगता पूर्व जन्म के किसी पाप के परिणामस्वरूप मिली सजा के कारण होती है। साथ ही लोग यह भी मानते हैं कि विकलांग लोगों की मदद करके ईश्वर को प्रसन्न किया जा सकता है क्योंकि विकलांगजन कमज़ोर होते हैं और ईश्वर कमज़ोर लोगों की सहायता करने वालों से प्रसन्न होते हैं। माना जाता है कि कमज़ोर लोग ईश्वर के ज्यादा करीबी होते हैं। दिव्यांग शब्द के उद्भव में यही भावनाएँ छिपी हैं और इसीलिए यह शब्द गलत भी है।

विकलांगजन किसी दिव्यता के साथ पैदा नहीं होते। वे भी साधारण मनुष्य की तरह ही होते हैं… सिर्फ़ मनुष्य! विकलांगता को पूर्व जन्म के पाप या ईश्वर से नज़दीकी जैसी किसी बेबुनियाद मान्यता से जोड़ना या उसे बढ़ावा देना दरअसल वैचारिक पिछड़ापन है। किसी भी देश की सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आम लोग इस विषय में जागरूक हों कि विकलांगता कभी भी, किसी के भी जीवन का हिस्सा बन सकती है। किसी के भी जीवन में विकलांगता का होना उसे मानव जाति से न तो नीचे खींचता है न ही ऊपर उठाता है। विकलांगता को पिछले बुरे कर्मों का फल मानना किसी भी गैर-विकलांग व्यक्ति के लिए खुद के बारे में अच्छा महसूस करने का एक अच्छा तरीका हो सकता है — लेकिन यह तरीका यह बेवकूफाना है।

जहाँ तक मैं समझ सका हूँ, प्रधानमंत्री यह कह रहे थे कि विकलांग व्यक्तियों में कुछ अतिरिक्त गुण होते हैं और वे उसके बल पर असाधारण लगने वाले काम भी कर सकते हैं। उन्होंने कहा था “मेरे दिमाग में अक्सर कुछ चलता रहता है। यूँ ही मेरे दिमाग में एक बात आई कि जिन लोगों में कुछ कमज़ोरी होती है या जिन्हें ईश्वर सारे अंग सही से नहीं देता उन्हें हम विकलांग कहते हैं लेकिन ईश्वर उन्हें कुछ अतिरिक्त शक्तियाँ भी देता है। ईश्वर उनमें कुछ अलग ताकत भी भर देता है। हम इन शक्तियों को देख नहीं सकते लेकिन जब हम ऐसे व्यक्तियों से मिलते हैं तो हमें उन शक्तियों का एहसास होता है।”

यह वक्तव्य विकलांग लोगों को साधारण मानवों से किसी अलग श्रेणी में खड़ा करता है — और यह ग़लत है।

समाज को विकलांग व्यक्तियों को न तो किसी दिव्यता के स्तर पर रखने की ज़रूरत है न ही हीन दृष्टि से देखने की। एक समाज के रूप में हमें बस यह समझना होगा कि विकलांगता कभी भी किसी के भी जीवन का हिस्सा बन सकती है। हमें मिलकर बस यह प्रयास करना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति पर उसकी विकलांगता का दुष्प्रभाव कम-से-कम पड़े। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विकलांगता के बावजूद भी एक इंसान सामान्य जीवन जी सके।

कोई भी विकलांग व्यक्ति दिव्यता का ओहदा नहीं चाहता। उसे चाहिए तो बस बराबरी का मौका, सुगम्य बुनियादी ढाँचा और समाज में स्वीकार्यता। बुनियादी ढाँचों को सुगम्य बनाने की बजाए कोई सरकार लोगों को विकलांगता में दिव्यता के दर्शन कराने लगे तो इससे कोई वांछित परिणाम सामने नहीं आएगा।

शब्दों से फ़र्क पड़ता है

किसी भी व्यक्ति या समुदाय को किस शब्द से संबोधित किया जाए इस बात पर अक्सर चर्चाएँ होती रहती हैं और वे इसीलिए होती हैं क्योंकि शब्दों के चुनाव से फ़र्क पड़ता है। अंग्रेज़ी में भी देखें तो हैंडीकैप्ड, डिसेबल्ड, डिफरेंटली एबल्ड, पर्सन्स विद डिसेबिलिटी जैसे तमाम शब्दों के उचित या अनुचित होने पर काफ़ी चर्चाएँ हुई हैं। ये चर्चाएँ इसीलिए हुई और अब भी होती रहती हैं क्योंकि शब्दों से फ़र्क पड़ता है।

मेरी चिंता यह भी है कि क्या दिव्यांग शब्द के आधिकारिक रूप से इस्तेमाल होने के पहले क्या कोई ऐसी चर्चा हुई थी? क्या उस चर्चा में किसी भाषाविद्‌ को शामिल किया गया? क्या उस चर्चा में विकलांग लोगों की तरफ से किसी प्रतिनिधित्व को निमंत्रण दिया गया था? यदि ऐसा हुआ था तो क्या सरकार को उन लोगों के नाम और उन चर्चाओं के बारे में कोई खुलासा नहीं करना चाहिए? क्या उस चर्चा में ऐसा कोई भी नहीं था जिसने इस शब्द के आधिकारिक इस्तेमाल पर आपत्ति दर्ज़ करायी हो?

शब्दों का लोगों के विचार पर गहरा असर पड़ता है। बगैर सोचे समझे दिव्यांग जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना एक समावेशी समाज के निर्माण में बाधा ही उत्पन्न करेगा।

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Jai pal Ambala City teacher jaipalambala62@gmail.c
Jai pal Ambala City teacher jaipalambala62@gmail.c
8 months ago

विचारोत्तेजक

RAMDEV GURJAR
RAMDEV GURJAR
9 days ago

sir me Rajasthan beawer district se hu Sir meri height 144cm he Mera vikalang card ban sakta hai please bata dena sir

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