“चल जा यहाँ से” — यह दुत्कार क्यों मुख्यमंत्री जी?

madhya pradesh chief minister mohan yadav's statement about disabled people

न्यूज़18 मध्य प्रदेश टीवी चैनल पर एंकर रूबिका लियाक़त के साथ हुए एक साक्षात्कार के दौरान मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री मोहन यादव ने कॉन्ग्रेस के चुनाव चिह्न “हाथ” को कटा हुआ पंजा बताया। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए मोहन यादव ने कहा:

“देखो माफ़ करना, हमारे यहाँ ये कटे-फ़टे शरीर वालों को अच्छा मानते ही नहीं हैं, अब क्या करें हम हमारी भी दिक्कत है। हमारे यहाँ तो पूरे शरीर के साथ हो तो राजा बनेगा नहीं तो नीचे ही कर देते हैं, चल जा यहाँ से। भगवान की कोई मूर्ति खंडित हो जाये तो भगवान की दया से उनका विसर्जन करना पड़ता है।”

प्रदेश के मुख्यमंत्री जैसे ऊँचे ओहदे पर बैठे व्यक्ति द्वारा दिया गया यह बयान बेहद असंवेदनशील, अशोभनीय, अपमानजनक और रूढ़िवादी मानसिकता का प्रतीक है। इस टिप्पणी को मैंने जब सुना तो मैं एकदम सन्न रह गया। ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरी और तमाम अन्य विकलांगजन की काबिलियत को एक पल में फूंक दिया है। ऐसा लगा जैसे कोई कह रहा हो कि तुम्हें जीने का कोई हक़ नहीं है, और अगर जीना है तो कीड़े-मकोड़ों की तरह “पूरे शरीर” वालों के जूतों के नीचे जिओ।

“चल जा यहाँ से” — यह दुत्कार क्यों मुख्यमंत्री जी?

इस टिप्पणी से गहरी वेदना हुई लेकिन आश्चर्य बिल्कुल नहीं हुआ। आश्चर्य इसलिये नहीं हुआ क्योंकि मैं जानता हूँ कि भारत का समाज आज भी विकलांगता और विकलांगजन को ऐसी ही हेय दृष्टि से देखता है। लोगों की सोच वही सदियों पुरानी है – हाँ लेकिन “आधुनिक दौर” में शायद उस सोच के प्रकटन को शहरी इलाकों में कुछ नियंत्रित किया जाने लगा है — और हम विकलांगजन इसी को “प्रगति” मान लेते हैं। हमें “मानना” पड़ता है क्योंकि यह तो हम अपने मन में जानते ही हैं कि बदला कुछ भी नहीं है। सतह के नीचे वही सब गंदगी आज भी दबी है।

मुख्यमंत्री मोहन यादव की इस टिप्पणी के बारे में एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस तरह की बेहद अपमानजनक टिप्पणी की मीडिया या सोशल मीडिया पर कोई आनुपातिक भर्तस्ना नहीं हुई। इस टिप्पणी की जितनी निंदा होनी चाहिये उसका एक अंश भी कहीं नहीं दिखायी दिया। इससे लगता है कि जैसे मीडिया और समाज ने मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी को अपनी मौन सहमति दे दी है। लगता है जैसे लोग भी मन ही मन मुख्यमंत्री से कह रहे हों कि “बात तो आपकी सही है!”

मन इतना क्षुब्ध है कि मुख्यमंत्री और मीडिया को बहुत कुछ कहना चाहता है लेकिन हमें कोशिश करनी चाहिये कि हम मुख्यमंत्री मोहन यादव की तरह रौ में न बहें और गरिमापूर्ण आचरण करें। इसलिये बस इतना ही कहूँगा कि मुख्यमंत्री को अपनी इस टिप्पणी के लिये क्षमा मांग लेनी चाहिये।

यहाँ मैं विकलांगजन से भी कुछ कहूँगा: मैं स्वयं भी एक विकलांग व्यक्ति हूँ – इसलिये मैं जानता हूँ कि हमारी जीवनयात्रा अन्य लोगों के मुकाबिले हज़ार गुणा मुश्किल होती है — लेकिन हमें अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिये कि हम आत्मनिर्भर बन सकें। अपने अस्तित्व को निचोड़ डालिये लेकिन आत्मनिर्भर बनिये — वरना ये नेता और सरकारें आपको नि:शुल्क व्हीलचेयर, छड़ी, कृत्रिम अंग, आवास तो दे देंगी लेकिन उसके ऐवज में आपका आत्मसम्मान छीन लेंगी। निर्णय आपको करना है कि क्या आपके इनके द्वारा अपमानित अनुभव करना चाहते हैं या इतना आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं कि आपको इनकी “सहायता-रूपी-दया” की आवश्यकता ही न पड़े।

ओ समाज, प्लीज़, जागो और आगे बढ़ो। पीछे की ओर चलते हुए गढ्ढे में मत गिरो। प्लीज़…

Notify of
guest

10 Comments
Oldest
Newest
Inline Feedbacks
View all comments
सन्दीप तोमर
सन्दीप तोमर
2 months ago

ऐसे व्यक्तियों को ऊँचे पदों पर रहने का कोई हक नहीं बनता। ऐसे स्टेटेन्ट नाजियों के द्वारा विश्व भर में प्रसिद्ध है।
बीजेपी की शीर्ष राजनीति इस पर कोई संज्ञान लेगी ऐसा लगता नहीं है।
मैं उनकी खुली भर्त्सना करता हूँ और मांग करता हूँ , कि इन्हें तत्काल प्रभाव से cm पद से हटाया जाए।

Pragya Rawat
Pragya Rawat
2 months ago

हम इसकी भर्त्सना करते हैं ।

रश्मि लहर
रश्मि लहर
2 months ago

निंदनीय टिप्पणी! आपने बिल्कुल सही लिखा है… मैं स्तब्ध हूॅं !

सौरभ पाण्डेय
सौरभ पाण्डेय
2 months ago

उस कार्यक्रम को मैं भी सुन रहा था, ललित भाई, और मुख्यमंत्री के कहे पर मैं सन्न हो गया था। कि, ये आदमी किस काल में जी रहा है? आम जन का प्रतिनिधित्व करते और बड़े पदों पर बैठे राजनेताओं में, नहीं सभी में, इतनी संवेदना, इतनी समझदारी, इतना विवेक तो होना ही चाहिए, कि, उन्हें हर समय भान हो, उनकी कही बातों का समाज पर कैसा प्रभाव पड़ सकता है। लेकिन, दुखद यह है, कि राजनेताओं का नैतिक व्यवहार, सामाजिक कर्म और उनकी वाक्कला का स्तर लगातार गिरता चला जा रहा है।
मुख्यमंत्री को अपने कहे पर न केवल क्षमा मांगनी चाहिए, बल्कि आगे भी अपने शब्दों-वाक्यों पर मनन-मंथन करते रहना चाहिए।

Sunita Panday
Sunita Panday
2 months ago

बहुत ही निंदनीय है यह.. ऐसे बोल वह भी एक मुख्यमंत्री के मुँह से? Shame!

Mritunjay Poddar
Mritunjay Poddar
2 months ago

इसलिए तो मैं कहता हूं कि सारे नेता पोस्टर छाप होते हैं। इनकों समाज से बहिष्कार कर देना चाहिए।

रोली अभिलाषा
रोली अभिलाषा
2 months ago

कुछ कहते नहीं बन रहा इस घृणित मानसिकता पर.

Subhash Agarwal
Subhash Agarwal
2 months ago

यह विचार अशोभनीय है । लाखों लोगों का अपमान है, स्वयं प्रधान मंत्री के विचारों का अपमान है। इन्हें बदलना होगा। राजनीति करते समय मर्यादाओं को नहीं लांघना चाहिए चाहे किसी भी पद पर हों।

Rachana Singh
Rachana Singh
2 months ago

एक मुख्यमंत्री के मुख से विकलांगजन के प्रति ऐसी अशोभनीय टिप्पणी कही से भी उचित नहीं है। ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद पर विराजने का कोई अधिकार नहीं है। हम सभी विकलांगजन इस व्यक्ति के घटिया बयान का घोर विरोध करते हैं।

Mohd moosa khan Moosa Ashant
Mohd moosa khan Moosa Ashant
2 months ago

आपकी टिप्पणी बहुत ही सार्थक और सोच भी सही। यही सोच हर विकलांग व्यक्ति की होनी चाहिए । मैं यहां पर कहना चाहूंगा की कुछ लोग शारीरिक रूप से विकलांग होते हैं , कुछ लोग मानसिक रूप से विकलांग होते हैं। कौन कितना विकलांग है यह विचारणीय प्रश्न है। बस हम सब जो विकलांग है वह हाथ पैर से विकलांग होने के कारण अपनी रोजी-रोटी की समस्या थोड़ा आसानी से नहीं पूरी कर पाते हैं और कुछ ऐसे अवसर आते हैं जिनका पूरी जिम्मेदारी से सामना भी करते हैं। पहले की सरकारी सरकारी नौकरी में उनको आरक्षण देती थी और पेंशन देती थी वर्तमान संस्कार में पेंशन समाप्त कर दिया है मेरा यह कहना है की वर्तमान सरकार को भी विकलांगों को अधिक 5% आरक्षण देना चाहिए और उनको पेंशन भी देनी चाहिए । ताकि सेवानिवृत्ति के उपरांत सुकून से जी सके ।
काश मुख्यमंत्री जी को एहसास होता लेकिन यहाँ किसी को अपनी गलती का एहसास नहीं होता।

10
0
आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा है!x
()
x