“लंगड़ा बनाया गर्लफ़्रेंड” – यही शीर्षक है उस वीडियो का जिसे आज सुषेण ने सोशल मीडिया पर मुझे भेजा। इस वीडियो में एक लड़का “लंगडा” बनने का नाटक करता है और दो लड़कियों के पास जाकर उनसे अपनी गर्लफ़्रेंड बनने की मिन्नत करता है। लड़कियाँ उसकी विकलांगता का मज़ाक बनाती हैं और इंकार कर देती हैं। इसके बाद वह लड़का अपनी जेब से नोटों की गड्डियाँ निकाल कर बताता है कि वह बहुत अमीर है। इतने रुपयों को देखते ही दोनों लड़कियों में गर्लफ़्रेंड बनने की होड़ लग जाती है।
मैं जानबूझ कर इस वीडियो का लिंक यहाँ नहीं दे रहा हूँ। आपको भी इस तरह के वीडियोज़ को सार्वजनिक-रूप से शेयर नहीं करना चाहिये क्योंकि ऐसा करके हम इन वीडियोज़ को और अधिक फैलाने में मदद ही देते हैं।
चार पैसे के लालच में सोशल मीडिया के ये तथाकथित कंटेंट-क्रिएटर्स समाज को बर्बाद करके ही छोडेंगे। जिस वीडियो की मैं बात कर रहा हूँ वह हर स्तर पर बुरा है। इतना खराब कंटेंट बनाने से पहले इन लोगों को यह सोचना चाहिये कि उनके इस व्यवहार से समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इस तरह का कंटेंट न केवल विकलांगजन के लिये बल्कि लड़कियों के लिये भी अपमानजनक है। आजकल जानबूझ कर इस तरह के वीडियोज़ में लड़कियों को पैसे के पीछे भागने वाली अवसरवादी की तरह दिखाया जा रहा है। यह एक बेहद ग़लत चलन है और इससे युवक-युवतियों के मन पर बुरा असर पड़ेगा।
सोशल मीडिया को एक खुले चौराहे की तरह देखना चाहिये। यहाँ ऐसा कुछ भी अपलोड न करें जो आप ख़ुद अपने पड़ोस के चौराहे पर न कर सकें। यदि आप सोशल मीडिया पर कंटेंट बनाने को एक रोज़गार की तरह देखते हैं तो इसे एक ज़िम्मेदारी की तरह भी देखें। देश में बेरोज़गारी का आलम यह है कि युवा इन वाहियात वीडियोज़ को बनाने में ही अपना कैरियर खोजने लगे हैं। लगभग मुफ़्त में बनने और प्रसारित होने वाला यह कंटेंट हर तरह की ज़िम्मेदारी से रिक्त होता है। मोबाइल कैमरा इन युवाओं के हाथों में उसी तरह है जैसे बंदर के हाथ में उस्तरा।
उक्त वीडियो से सम्बंधित सभी लोगों को स्वयं को स्क्रिप्ट-राइटर, अभिनेता, निर्देशक इत्यादि मानने से पहले थोड़ी कोशिश करके ये कलाएँ सीख भी लेनी चाहिये। कला को सीखने से जो संवेदनशीलता आप में विकसित होगी वह आपको बेहतर वीडियोज़ बनाने के लिये भी प्रेरित करेगी।