कोई भी विकलांग व्यक्ति जीवन भर अपनी विकलांगता से जूझता है, उससे लड़ता है, झगड़ता है, और जीवन भर की इस तकरार में कभी विकलांगता जीतती है तो कभी विकलांग व्यक्ति।
वैसे तो विकलांगता को हराने के बहुत से साधन है और विकलांग व्यक्ति अपने जीवन में कई ऐसे प्रयास भी करता है जिससे विकलांगता उसकी खुशियों के आड़े न आये, उन्हीं प्रयासों में से एक है सरकारी नौकरी। दशकों से सरकारी नौकरी को एक ऐसा शस्त्र माना जाता रहा है जो काफ़ी हद तक विकलांग व्यक्ति को विकलांगता पर जीत दिलाने में उसकी मदद करती है।
पुराने ज़माने में किसी विकलांग व्यक्ति के पास बहुत कम ऐसे संसाधन होते थे जिससे वह अपना जीवनयापन अच्छे से कर सके। इसलिए उन्हें अधिकतर अपने परिवारजन पर ही निर्भर रहना पड़ता था। उन्हें अपने घर-गाँव तक ही सीमित कर दिया जाता था। एक सीमित वातावरण में रह कर कोई कितना ही अपना विकास कर सकता है। जागरूकता इतनी कम होती थी कि सरकारी नौकरी का एग्जाम कब निकला, किसकी वेकन्सी है, कौन एग्जाम कराता है, कहाँ एग्जाम सेंटर है – ये सब उनके लिए पता कर पाना बहुत कठिन था। जो लोग पता कर भी लेते है थे उनमें से कई एग्जाम देने पहुँच ही नहीं पाते थे। लेकिन आज ऐसा नहीं है, आज इंटरनेट का ज़माना है। फिर भी आज भी कई मायनों में जागरूकता बहुत कम ही है।
पहले सरकारी नौकरी पाने वाले को सिर आँखों पर रखा जाता था लेकिन आधुनिक युग में लोगों के सरकारी नौकरी को लेकर अलग-अलग मत है। कई लोग आज भी इसे उतना ही महत्त्व देते है जितना पहले दिया जाता था और कई लोग इसे अब एक बंधन समझने लगे है। समय की बर्बादी समझने लगे है।
ऐसा क्यों?
सबसे पहले तो सरकारी नौकरी के लिए सालों साल तैयारी करो। आज ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि किसी को भी आसानी से नौकरी मिल जाये। नौकरी पाने के लिए हज़ारो-लाखों लोगों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है।
विकलांग व्यक्ति पहले ही अपने मानसिक और शारीरिक उलझनों से घिरा रहता है फिर एग्जाम की तयारी के लिए जिस तरह के वातावरण की आवश्यकता होती है वह उन्हें नहीं मिल पाता। चलो हिम्मत करके तैयारी शुरू भी कर दे तो किसी को ज्यादा देर बैठने की दिक्कत क्योंकि सरकारी नौकरी आपका समय मांगती है, आप पेन को पेपर पर कितना घिसते हो आपका परिणाम उस पर निर्भर करता है। इसलिए जितनी लम्बी सिटिंग उतना आप एग्जाम निकालने के नज़दीक।
किसी को विभिन्न विषयो को समझने की उलझने, किसी को सुन कर उसे एग्जाम के अनुसार ढालने की दिक्कत, किसी का गणित कमजोर तो किसी की इंग्लिश, किसी का GK तो किसी की रीज़निंग, कोई हिस्ट्री में अच्छा तो पॉलिटी में फिस्सडी, कोई टेक्नोलॉजी का राजा तो किसी का जियोग्राफी में डब्बा गुल। जो सब की जानकारी रखता है तब कही जाकर मिलती है उसे सरकारी नौकरी। आजकल मैगी नहीं है सरकारी नौकरी कि तैयारी की और झट से लग जाएगी। सरकारी नौकरी मांगती है आपका समय, आपका त्याग, आपकी निरंतरता, आपका परिश्रम, आपका पसीना, ख़ून का पता नहीं शायद कई जगह ख़ून भी मांगती भी होगी। और इन सबके बाबजूद ऐसी कोई गारंटी नहीं कि आपकी नौकरी लग ही जाये।
विकलांगजन को सरकार नौकरियों में आरक्षण देती है। इस समय यह आरक्षण 4% है और सरकार इसको बढ़ाने के लिए प्रयासरत भी है। लेकिन आप PWD का अन्य केटेगरी के कटऑफ से तुलना करेंगे तो तस्वीर स्पष्ट दिखेगी। हालांकि आपको अंतर मिलेगा लेकिन इतना भी नहीं कि आपको नौकरी थाली में परोसकर दी जा रही हो।
चलो भाई एग्जाम निकल गया नौकरी भी लग गई तो ऐसा नहीं कि सब अच्छा हो गया। नौकरी के बाद एक अलग ही स्ट्रगल शुरू होता है आप अभी तक जिस माहौल में रहते थे, सरकारी दफ़्तरों में उससे बिल्कुल विपरीत माहौल मिलेगा। अब आप एक सरकारी संस्था के कर्मचारी है आपको वहाँ का डेकोरेम मेन्टेन करना पड़ता है। आपको ऐसे निर्णय लेने पड़ते है जो आपने कभी न लिए हो, एक अलग दुनिया है सरकारी नौकरी वालो की।
हाँ सरकार आपके स्तर को उठाने के लिए आपको प्रोत्साहित करती है, समय-समय पर आपको अतिरिक्त लाभ भी देती है, आपको कोई समस्या है तो एक grievance officer देती है जो आपकी समस्या का निराकरण करता है। आपको वे सारी सुविधायें देती है जिससे आप अपना जीवन का स्तर उठा सके और समाज की मुख्य धारा से जुड़ सके। रही बात समाज की तो वो आप चाहे सरकारी नौकरी कर रहे हो या नहीं उनका रवैया हमेशा एक ऐसा ही रहता है कभी अच्छा तो कभी बुरा।
सरकारी नौकरी और प्राइवेट नौकरी में बहुत अंतर होता है। प्राइवेट नौकरी एक बहती नदी की तरह होती है, आज आप इस कम्पनी में तो कल किसी दूसरी कंपनी में लेकिन सरकारी नौकरी एक समुद्र की तरह होती है, सालो-साल एक ही जगह, एक ही टेबल पर, वही रोज के लोगो के साथ काम करते समय निकल जाता है। कभी-कभी सरकारी ऑफिस आपको आपका घर लगने लगता है। जैसे समुद्र की प्रकृति गंभीर होती है वो सभी नदी-नालो का जल अपने अंदर समा लेता है ठीक एक सरकारी कर्मचारी भी धीरे-धीरे गंभीर प्रवत्ति का होता जाता है।
सरकारी कर्मचारी का पेशा ऐसा होता है कि उसे देश और देश की जनता के लिए काम करना पड़ता है। वह जब तक नौकरी करता है बस इसी जनता की सेवा में समय निकाल देता है। लम्बे समय तक एक ही तरह का काम करते रहना पड़ता है जिस कारण उसकी रचनात्मकता काफ़ी हद तक खत्म-सी हो जाती है। बहुत कम ऐसी सरकारी नौकरियाँ है जहाँ रचनात्मकता देखी जाती है। सोशल लाइफ बहुत सीमित हो जाती है। एक समय के बाद जिंदगी बिल्कुल ठहर-सी जाती है। वही रोज़ की समान दिनचर्या। इस भागदौड़ भरी दुनिया में यह ठहराव ही है जो सरकारी कर्मचारियों को एक सुकून देता है।
अब आपको निर्णय लेना है कि सरकारी नौकरी अच्छी है या फिर एक बंधन है या समय की बर्बादी। मैं तो बस इतना ही कहूँगा कि आप एक सरकारी नौकरी के दौरान इतना कुछ पढ़ते-समझते हो कि आपकी नौकरी लगे न लगे लेकिन आप एक समझदार व्यक्ति के रूप में ज़रूर परिपक्व हो जाते हो।
बहुत अच्छा लेख सभी पहलुओं पर ध्यान दिया गया है
धन्यवाद आपका 🙏
बहुत अच्छा मूल्यांकन मित्र
आभार 🙏
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने लोकेंद्र जी, सरकारी और गैर सरकारी नौकरी के सभी पहलुओं को ध्यान में रखा है।
आपको धन्यवाद 🙏