आप तो पहले से ही…

woman in wheelchair shopping in market

एक बात बताइये बाज़ार में अलग-अलग तरह की ख़रीदारी करते हुए, फल-सब्जी के ठेलों से सामान खरीदते समय या पैसों के बदले किसी भी तरह की कोई सुविधा लेते समय आप मोल-भाव करते हैं? या दुकानदार को उसका मुँह-माँगा दाम पकड़ा देते हैं?

क्या कहा…? “मोल-भाव के बिना ख़रीदारी कैसी! ख़रीदारी में मोल-भाव करके दाम कम कराने में जो मजा है, वो सामान के मुँह-माँगे दाम देने में कहाँ! फिर चाहे दाम एक रुपया ही कम क्यों न कराया जाए। दाम कम करा कर सामान खरीदने में जो ‘मजा’ या यूँ कहो ‘आत्मिक-सुख’ है, वह दुकानदार को उसके मुँह-माँगे दाम देने में कहाँ! और वैसे भी कोई भी दुकानदार, रेहड़ी वाला या फेरी वाला पहले से ही अपने सामान के दाम बढ़ा-चढ़ाकर बतलाते हैं, तब ही तो हमारे कहने पर थोड़ा-मोड़ा दाम कर लेते हैं। फिर ऐसे में थोड़ा-मोड़ा दाम कम कराना तो बनता ही है न। वैसे भी दाम कम करा लेने पर भी उन्हें अपने सामान पर अच्छा-ख़ासा फ़ायेदा हो ही जाता है।”

हम्म, शायद आप सही कहते हैं। उन्हें कुछ तो फ़ायदा होता ही होगा। तभी तो आपके दाम कम कराने पर वे कम कर भी देते हैं। ख़ैर मुझे यह अनुभव कहाँ! मुझे तो भूले-से ही कभी मोल-भाव करने का ‘मजा’ या ‘आत्मिक सुख’ का अनुभव हुआ होगा। वरना तो मैं अधिकतर दुकानदार को उसके द्वारा बताएँ मुँह माँगे दाम ही दे देती हूँ।

अब आप कहेंगे कि ज़रूर मैं मोल-भाव करने में कच्ची होंगी। हाँ! यह बात भी सही है, कच्ची तो मैं हूँ; लेकिन पक्की होने के लिए जब भी कभी दुकानदार, रेहड़ी वाले या किसी फेरी वाले से सामान के दाम को लेकर मोल-भाव करती हूँ, तो तपाक से उनके कुछ शब्द सुनने को मिल जाते हैं—“भला आपसे भी कोई हम ज़्यादा दाम लगायेंगे! आप तो पहले से ही…!?,  आपसे ज़्यादा दाम लेकर कहाँ जाएँगे!?” 

इन शब्दों को सुनकर ऐसा लगता है, जैसे ये शब्द सीधे मेरी विकलांगता पर प्रहार कर रहे हों। किसी सामान का दाम कम कराने की कीमत यदि किसी के तरस भरे शब्दों से अपनी विकलांगता पर प्रहार कराना है, तो मुझे ऐसा मोल-भाव नहीं करना। इसलिए मैं दुकानदार के मुँह-माँगे दाम ही देने को तैयार हो जाती हूँ; लेकिन ऐसा करने पर भी लोग कहाँ अपने तरसरूपी बाणों से एक विकलांग व्यक्ति के मन को बींध डालने से चूकते हैं। वे तो विकलांग व्यक्ति के मन को आहत करने का कोई-न-कोई  तरीका निकाल ही लेते हैं।

समाज में कुछ दुकानदार या कोई सेवा उपलब्ध करने वाले कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो किसी विकलांग व्यक्ति से अपने सामान या सुविधा के बदले कुछ लेना ही नहीं चाहते। ऐसा करने के पीछे उनके विचार और शब्द कुछ ऐसे होते हैं—“भला हम आपसे कोई दाम कैसे ले सकते हैं! आप तो पहले से ही…!?, आपसे कोई दाम लेकर हम कहाँ जाएँगे!?

ये दोनों ही प्रकार के लोग हर हाल में अपने तरस भरे शब्दों  और व्यवहार से विकलांग व्यक्ति के मन को ठेस पहुँचाने से कतई नहीं चूकते। इस तरह के लोग अपने ऐसे शब्दों और व्यवहार के लिए खुद को महानता की ऊँची श्रेणी में रखते हैं और अपने ऐसे कृत्यों को पुण्य प्राप्ति का साधन मान भाव-विभोर हुए जाते हैं। उन्हें इस बात का कोई अंदाजा भी नहीं होता कि उनके ये पुण्य कर्म किसी के मन, किसी के आत्म-स्वाभिमान को कितनी ठेस पहुँचाते हैं।

मेरे साथ भी ऐसा जाने कितनी बार होता है, जब दोनों ही तरह के लोग अपने-अपने तरीके से मेरे आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचा देते हैं; लेकिन अब मैंने ठान लिया है कि अब मैं उन्हें मेरे आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचाने की आज़ादी नहीं दूँगी। अब जब भी कोई ऐसा करता है तो मैं कड़े शब्दों में और दृढ़ता के साथ उनके व्यवहार और सोच का विरोध करती हूँ।

कई बार मैं अपनी ट्राईसाईकिल ठीक कराने के लिए एक ऑटो-वर्कशॉप पर जाती हूँ। पहले जब भी मैं ट्राईसाईकिल ठीक कराने के बाद उस ऑटो-वर्कशॉप के मालिक से मेरी ट्राईसाईकिल ठीक करने का लागत-मूल्य  पूछती थी, तो वे बड़ी शालीनता के साथ मेरे मन को आहत करने वाले ये शब्द बोल देते थे—“भला हम आपसे कोई दाम कैसे ले सकते हैं!? आप तो पहले से ही…!?,  आपसे कोई दाम लेकर हम कहाँ जाएँगे!? वे ये शब्द इतनी शालीनता के साथ बोलते थे कि मैं उन्हें कुछ नहीं कह पाती थी। इस तरह वे हमेशा मेरे आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचाऐ जा रहे थे; लेकिन एक दिन मैंने उनकी इस सोच और व्यवहार का विरोध करते हुए कड़े शब्दों में कह दिया, “आपका अपने काम के बदले मुझसे कोई मूल्य न लेना, मेरे आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचता है। मैं आर्थिक रूप से इतनी सक्षम तो हूँ कि आपके काम का मूल्य चुका सकूँ। यदि आप मेरी विकलांगता को आधार बनाकर मुझसे अपने किए काम का दाम नहीं लेंगे तो आगे से मुझे मजबूरन अपने काम के लिए किसी अन्य ऑटो-वर्कशॉप पर जाना होगा”।

आख़िरकार मेरे विरोध की जीत हुई। अब उस ऑटो-वर्कशॉप के मालिक मुझसे अपने किए काम का सही मूल्य लेने लगे हैं।

वहीं दूसरी ओर, जब दूसरी तरह के लोगों से मैं किसी सामान के दाम को कम कराने के लिए मोल-भाव करती हूँ तो उनमें से भी अधिकांश लोग आदतन उपरोक्त शब्दों —“भला आपसे भी कोई हम ज़्यादा दाम लगायेंगे!? आप तो पहले से ही…!?,  आपसे ज़्यादा दाम लेकर कहाँ जाएँगे?!”  को बोलने से नहीं चूकते।

एक बार मैं और मेरी पड़ोसी किसी फेरी वाले से कपड़ा खरीदने लगे। फेरी वाले ने हम दोनों को कपड़े का समान मूल्य बताया। पड़ोसी ने कपड़ा लेने से मना कर दिया; लेकिन मैं मोल-भाव करने लगी तो फेरी वाले को उपरोक्त शब्द बोलते हुए ज़रा भी देरी न लगी। मुझे गुस्सा आ गया और मैंने उसे गुस्से में बोल दिया कि “तुमने मुझे और पड़ोसी को कपड़े का समान मूल्य ही बताया है फिर मेरे द्वारा मोल-भाव करने पर तुम कैसे कह सकते हो कि तुम मेरी विकलांगता के कारण ज़्यादा मूल्य लगा ही नहीं सकते। यदि मेरी पड़ोसी मोल-भाव करती तो उसके आगे अपने सामान के मूल्य को सही साबित करने के लिए तुम कोई दूसरा बहाना रखते; लेकिन मेरे द्वारा मोल-भाव करने पर तुम बड़ी आसानी से सीधे मेरी विकलांगता पर निशाना साध रहे हो”! मेरे ऐसा बोलने पर वह व्यक्ति झेप गया और तब उसने कपड़े का किफ़ायती मूल्य लिया और चला गया।

इस तरह उस दिन मैंने उस व्यक्ति की ग़लत सोच का विरोध करते हुए आख़िरकार मोल-भाव करने का आत्मिक-सुख ले ही लिया।

जाने क्यों लोग विकलांग व्यक्तियों को हमेशा दीन-हीन ही मानते हैं या दीन-हीन रूप में ही देखना चाहते हैं!? उनके प्रति झूठी हमदर्दी और तरस दिखाते हैं! पता नहीं कब वे जानेंगे और मानेंगे कि विकलांग लोगों को उनकी झूठी तो छोड़ो सच्ची हमदर्दी और तरस भी नहीं चाहिए। यदि कुछ चाहिए तो वह है सिर्फ़ समानता का नज़रिया”।

विकलांगता के कारण किसी व्यक्ति का कोई अंग विशेष ही अक्षम होता है उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व नहीं; लेकिन समाज में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो विकलांग व्यक्तियों को पूर्णरूपेण अक्षम मान उस पर तरस खाते हैं। वे अपने इस कृत्य को पुण्य कर्म की संज्ञा भी देते हैं और इसमें अपनी महानता समझते हैं। ऐसे लोगों को नहीं मालूम कि वास्तव में उनकी इस तरह की सोच, उनकी मानसिकता ही पूर्णरूपेण विकलांग हो चुकी है, जो किसी व्यक्ति में सिर्फ़ उसकी विकलांगता को ही देख पा रहे हैं। उसके जीवन के अन्य पक्षों में उसकी सक्षमता, उसकी सार्थकता को नहीं।

Notify of
guest

3 Comments
Oldest
Newest
Inline Feedbacks
View all comments
Anju Banwala
Anju Banwala
2 months ago

बहुत अच्छे नूपुर…यूँ ही कुछ अच्छा लिखती रहा करो, जिसे पढ़कर ओरों को भी कुछ सीख और प्रेरणा मिले

राशि
राशि
2 months ago

भाव को बहुत अच्छे से अपने शब्दों में पिरोया है आपने।

Madhav Dubey
Madhav Dubey
1 month ago

बहुत अच्छा नूपुर जी… आपने अपने शब्दों में हर किसी के मन की बात को कह दिया | आपने ये सही कहा की लोग अकसर शालीनता से हमारे मन को आहत भरे शब्द बोल जाते है और हम उस समय कुछ कह नहीं पाते है | लेकिन आज आपके लेख को पढ़कर यही लगा कि बुरा बोलने पर तुरन्त विरोध करना चाइये |

3
0
आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा है!x
()
x