मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

sad disabled woman

यह कहानी कलाराम राजपुरोहित द्वारा लिखी गई है। आप मोबाइल फ़ोन का व्यवसाय करते हैं। कलाराम दोनो पैर में पोलियों और वर्ष 2001 में एक ऑपरेशन के बाद से स्पाइनल कॉर्ड इंजरी से भी प्रभावित हैं।

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एक गाँव में मोहन नाम का किसान रहता था। मोहन के घर एक लड़की पैदा हुई और उसने बेटी का नाम भावना रखा। किसान को लड़के की उम्मीद थी लेकिन जब उसे पता चला कि लड़की पैदा हुई है तो वह खुश नहीं हुआ क्योंकि उसके माता-पिता चाहते थे कि उनकी बहू लड़के को जन्म दे ताकि उन्हें कोई ऐसा मिल जाए जो उनके वंश को आगे बढ़ा सके। लेकिन दूसरी तरफ उसकी पत्नी को लड़की और लड़के में कोई फ़र्क नहीं दिखता था। उसकी पत्नी ने उसे समझाया कि यह सब अपने हाथ की बात नहीं है और आज के समय में लड़की और लड़के में कोई फ़र्क नहीं है। लड़कियाँ वह सब कर रही हैं जो लड़के भी नहीं कर सकते। सामने शर्मा परिवार को ही देख लीजिए। उनका बेटा पढ़-लिखकर अच्छा डॉक्टर बना लेकिन डॉक्टर बनने के बाद बड़े अस्पताल के सपने की खातिर उसने अपने माता-पिता की सारी संपत्ति बेच दी और अपने माता-पिता को तड़पने के लिए छोड़ दिया। दूसरी तरफ उनकी बेटी उन्हें अपने ससुराल बुला कर उनकी सेवा कर रही है। तमाम बातचीत और पत्नी की सलाह के बाद उसने भावना को ही अपनी किस्मत मान कर अपना लिया।

किसान की पत्नी ने भावना का बहुत अच्छे से लालन-पालन किया। समय के साथ भावना बड़ी होने लगी। उसका दाखिला सरकारी स्कूल में करा दिया गया। किसान जब भी स्कूल जाता तो शिक्षिका उससे कहा करती थी कि भावना पढ़ने में बहुत अच्छी है। अगर इसकी पढ़ाई ऐसे ही जारी रही तो भविष्य में यह तुम्हारा और गाँव का नाम रोशन करेगी। इसी तरह समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा। भावना स्कूल से वापस आने के बाद अपने पिता के काम में हाथ बँटाती थी। वह अपने पिता और अन्य किसानों को खेतों में काम करते देखती थी। भावना अपने पिता और अन्य किसानों को धूप, पानी, बारिश और अन्य कारणों से होने वाली समस्याओं को समझने लगी थी इसलिए वह पढ़-लिखकर उन सबकी मदद करना चाहती थी।

एक दिन उसी गाँव में एक समारोह में शामिल होने के लिए कलेक्टर साहब को आना होता है। मौका देखकर स्कूल की प्रधान शिक्षिका ने कलेक्टर साहब से स्कूल में आकर बच्चों का उत्साहवर्धन करने का अनुरोध किया। प्रधान शिक्षिका के अनुरोध पर कलेक्टर स्कूल में आए। उन्होनें स्कूल और बच्चों के बारे में जानकारी ली। तब कलेक्टर साहब को पता चला कि भावना हमेशा स्कूल अव्वल आती है और अन्य सभी गतिविधियों में भी बहुत अच्छी है। कलेक्टर साहब ने भावना को मंच पर बुलाया और उसका सम्मान किया। साथ ही उन्होंने कहा कि आप सभी को भी भावना की तरह पढ़ाई करनी चाहिए ताकि भविष्य में आपको कोई अच्छा पद मिल सके या फिर आप अच्छी पढ़ाई करके कोई बड़ा व्यवसाय कर सकें जिससे आप हज़ारों अन्य बेरोज़गार लोगों के लिए रोज़गार पैदा कर सकें। फिर साहब कलेक्टर ने सभी बच्चों से पूछा कि अगर आपका कोई सवाल है तो आप मुझसे पूछ सकते हैं। इस पर सभी बच्चों ने कलेक्टर से अलग-अलग सवाल पूछे। भावना भी कलेक्टर साहब की बातों और उनकी ऊर्जा से काफी प्रभावित हुई और उसने मन ही मन ठान लिया कि वह भी कलेक्टर बनेगी।

पर जीवन का नियम है, हम जो सोचते हैं वैसा नहीं होता। शायद समय को कुछ और ही मंज़ूर था, एक दिन जब भावना स्कूल जा रही होती है तो उसका एक कार से एक्सीडेंट हो जाता है, एक्सीडेंट के बाद कार का ड्राइवर भाग जाता है। आस-पास के लोगों द्वारा भावना को आनन-फानन में अस्पताल में भर्ती कराया जाता है और डॉक्टर तुरंत उसकी जांच करते हैं। डॉक्टर बताते हैं कि भावना का एक पैर काटना पड़ेगा, तभी उसकी जान बच सकती है, मोहन और उसके परिवार को न चाहते हुए भी ये फैसला लेना पड़ा। ऑपरेशन के बाद भावना की जान तो बच गई पर इसकी वजह से उसे कई दिन तक बिस्तर पर ही रहना पड़ा, इसकी वजह से उसकी पढ़ाई भी छूट गई।

इस समय जो भी दोस्त, रिश्तेदार भावना से मिलने आते थे वे उसके परिवार वालों से यही कहते थे कि लड़की की ज़िन्दगी बर्बाद हो गई है। अब एक पैर न होने की वजह से उसके लिए कोई रिश्ता नहीं आएगा और अगर कोई रिश्ता मिल भी गया तो उसमें भावना को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। ये बातें लगातार सुनकर भावना भी डिप्रेशन में जाने लगी और वह एक ऐसी स्थिति में पहुँच गई जहाँ उसका दूसरा पैर और हाथ और भी कमज़ोर होने लगा। अब उसे अपने बिस्तर से उठने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। वह अपने दैनिक कार्य के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहने लगी थी। डॉक्टर ने मोहन और भावना को पहले ही बता दिया था कि अगर उसने समय रहते एक्सरसाइज़ नहीं की तो उसे दूसरी भी तकलीफ़ हो सकती हैं है; क्योंकि एक्सीडेंट की वजह से उसका शरीर बहुत कमजोर हो गया है भावना पहले ही अपना एक पैर खो चुकी थी, और अब वह धीरे-धीरे मानसिक-रूप से भी हार रही थी।

यह बात पास के गाँव में रहने वाले एक व्यक्ति को पता चलती है। वह व्यक्ति बचपन से ही दोनों आँखों से विकलांग था। जैसे ही उस व्यक्ति को पता चलता है कि भावना किस तरह अपने डिप्रेशन के कारण धीरे-धीरे अपने जीवन को अंत की ओर ले जा रही है, तो वह व्यक्ति उससे मिलने उसके घर पहुँचता है और परिवार से बात करने के बाद भावना को समझाता है कि अगर मेरे जैसा अनपढ़ और दोनो आँखो से विकलांग व्यक्ति भी जीवन जी सकता है फिर तुम तो पढ़ी-लिखी हो और तुम्हारे एक ही पैर से ही दिक्कत है। अगर तुम अभी भी नहीं समझोगी तो इसका तुम्हारे परिवार पर बहुत भारी दुष्प्रभाव पड़ेगा। उसने समझाया कि तुम्हारे सामने अभी लंबा जीवन पड़ा है, तुम मुझसे भी बेहतर कर सकती हो। इस दौरान उस व्यक्ति को पता चलता है कि वह कलेक्टर साहब से प्रभावित थी। वह व्यक्ति कलेक्टर साहब से मिलने जाता है और उन्हें पूरी बात बताता है। सारी बात जान कर कलेक्टर साहब भावना के घर आ कर उसे समझाते हैं कि एक पैर न होने से जीवन में ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता, अगर तुम चाहो तो अभी बहुत कुछ कर सकती हो। कलेक्टर साहब और उस व्यक्ति के समझाने का असर भावना पर दिखने लगा। अब वह धीरे-धीरे ठीक होने लगी, और कुछ समय बाद उनकी मेहनत रंग लाई और उसका चयन पटवारी के पद पर हो गया। पटवारी के पद पर काम करते हुए उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी और सभी किसानों की हर संभव मदद की।

मनुष्य के जीवन में कई बार ऐसी परेशानियाँ आती हैं जिसके कारण व्यक्ति अपने मन से हार जाता है। उसके पास जीतने की क्षमता तो होती है लेकिन वह अपनी सारी शक्तियों का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाता क्योंकि वह सोचने लगता है कि मैं यह नहीं कर सकता और शरीर भी मन का साथ देता है। वैज्ञानिकों ने भी इस बात को साबित कर दिया है कि यदि व्यक्ति अपने मन से हार जाता है तो उसकी हार निश्चित है। फिर चाहे उसने कितनी भी मेहनत क्यों न कर ली हो। इस पर दोहा भी कहा गया है “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत॥”

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Pramila
Pramila
2 months ago

कहानी बहुत अच्छी और प्रेरणादाई है

Himanshu
Himanshu
2 months ago

किसी लम्बे सफर की रातों में, तुझे अलाव सा जलाता हूँ…. भावना के लिए अलाव वो दृष्टिहीन व्यक्ति बन कर आया

Madhav Dubey
Madhav Dubey
2 months ago

कहानी बहुत ही अच्छी और मोटिवेशनल है…अगर इंसान मन से न हारे तो जीत निश्चित है और ये सच है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत |

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