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पंख लगा लो…जहाँ मन करे उड़ जाना

कहते हैं कि ‘उत्साह’ में व्यक्ति वे सब कार्य कर जाता है जो आमतौर पर करने की सोचता भी नहीं और यदि ‘उत्साह’ में ‘प्रोत्साहन’ का रंग मिल जाएँ तो कहना ही क्या! तब बस दुष्यंत कुमार जी द्वारा कही गई यहीं पंक्तियाँ याद आती है किकौन कहता है आसमाँ में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों”।

वैसे तो हमें ज़िन्दगी के प्रति हमेशा ही उत्साहित रहना चाहिए; लेकिन ज़िन्दगी के कुछ पल विशेष उत्साह से भरे होते हैं। उन पलों में किए गए कार्यों से वे पल हमेशा यादगार बन जाते हैं और जीवन के कठिन दौर से उबरने में सहायक सिद्ध होते हैं। ऐसे ही कुछ पल आज मेरी स्मृतियों के झरोखों से बाहर झाँक रहे हैं।

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पिछले अप्रैल महीने के अंत में मैं बहुत उत्साहित थी। उत्साह की वजह थी मेरी नई दोस्त; जो सरप्राइज़ बनकर मेरे पास आ गई थी। इसको पा कर मैं बहुत ख़ुश थी। आप कहेंगे कि दोस्त से मिलकर ख़ुश होते है या फिर पा कर? मैं कहूँगी कि इस दोस्त को पा कर! क्योंकि यह मेरी नयी व्हीलचेयर थी (मेरी सच्ची हमसफ़र, हमकदम)। यह मेरे पास 23 अप्रैल को आई थी।  वैसे तो इससे पहले भी मैंने कई व्हीलचेयर इस्तेमाल की हैं और सभी ने मेरा साथ भी ख़ूब निभाया है; लेकिन वे सभी मेरे लिए बहुत बड़ी थी। जिस कारण मेरे लिए इतनी आरामदायक नहीं रही जितनी यह है। उनकी अपेक्षाकृत यह काफ़ी छोटी है। इसके आने की ख़बर मैंने अपने सभी दोस्तों को दी। मैं इस पर बैठकर इसे ख़ूब चलाना चाहती थी; लेकिन घर छोटा होने के कारण मुश्किल से पूरे दिन में दस-बारह मीटर ही चला पा रही थी।

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पोलियो और स्कोलियोसिस के कारण बढ़ रही अन्य शारीरिक समस्याओं को कम करने के लिए मैं कई दिन से फिजियोथेरेपी शुरू कराने की सोच रही थी। इसलिए मई महीने की शुरुआत में मैंने गूगल पर कुछ थेरेपी सेंटर्स को खोजा और उनसे संबन्धित आवश्यक जानकारी और समीक्षा के आधार पर उनमें से एक थेरेपी सेंटर पर जाकर कन्सल्ट करने का निर्णय लिया। अगले ही दिन मैं अपनी पहचान के ऑटो वाले भईया (जिनका नाम गौरव हैं) के साथ उस थेरेपी सेंटर पर पहुँच गई। वहाँ की स्थिति देखते ही मैंने फ़ैसला कर लिया था कि वहाँ दोबारा नहीं जाऊँगी। वहाँ पर न कोई साफ़-सफ़ाई ही थी और न ही वह सेंटर व्यवस्थित दिख रहा था। मेरा फ़ैसला तब और मज़बूत हो गया जब थेरेपिस्ट ने प्रति सेशन फ़ीस बताई। यह बहुत अधिक थी, इसका भुगतान कर पाना मेरी आर्थिक क्षमता से बाहर की बात थी। इसलिए मैं वहाँ से वापस आ गई।

वापस आते समय मैंने गौरव भईया को थेरेपी सेंटर की स्थिति के बारे में सब बताया। भईया परिवार के सदस्य जैसे हैं तो मैं उनसे बहुत-सी बातें साझा कर लेती हूँ। उन्होने मुझे एक अन्य थेरेपी सेंटर के बारे में बताया जो मेरे घर से कुछ ही दूरी पर था। भईया ने बताया कि वह साफ़-सफ़ाई, उचित व्यवस्था और फ़ीस के मामले में पहले थेरेपी सेंटर से अपेक्षाकृत बेहतर है। वे मुझे उस थेरेपी सेंटर पर ले गए; संयोग से उस दिन वह बंद मिला और मुझे थेरपिस्ट से बिना मिले घर लौटना पड़ा।

घर आते हुए भईया ने मुझे उस सेंटर तक जाने का पूरा रास्ता ठीक प्रकार से दिखाया और समझाया, साथ ही बोला कि मैं अकेले भी वहाँ तक जा सकती हूँ। भईया हमेशा ही मुझे अकेले आने-जाने के लिए बहुत प्रोत्साहित करते हैं। मैं भी जानती थी कि ट्राईसाईकिल से मैं अकेले थेरेपी सेंटर पहुँच सकती थी; लेकिन सेंटर के अंदर जाने के लिए व्हीलचेयर की ज़रूरत थी और ट्राईसाईकिल में व्हीलचेयर रखकर ले जाना संभव नहीं था। ख़ैर मैंने उस समय भईया को ये सब बातें नहीं समझाई और घर आ गई।

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उसी दिन शाम में एक परिचित की कॉल आई। उन्हें पता था कि मेरी नयी व्हीलचेयर (Freedom Forza) आई है। मुझे बधाई देते हुए उन्होने मुझे एक रिहेब्लिटेशन सेंटर जाकर व्हीलचेयर चलाने की ट्रेनिंग लेने को कहा। मैं जानती थी कि इस तरह की ट्रेनिंग से मैं अधिक बेहतर तरीके से व्हीलचेयर मैनेज करना सीख जाऊँगी; लेकिन अपनी कुछ व्यक्तिगत समस्याओं के कारण मैं वहाँ नहीं जा सकती थी और न ही उनसे अपनी समस्या साझा करना चाहती थी। इसलिए मैंने वहाँ जाने से मना कर दिया और उन्हे कहा कि मुझे व्हीलचेयर ठीक से चलानी आती है और जो कुछ नहीं आता वह मैं ख़ुद ही सीख लूँगी। यह सुन कर वे नाराज़ हो गए और बोले कि ‘मैं कुछ नहीं कर सकती’ जब सड़क पर स्पीड ब्रेकर और गड़ढ़े आदि पार करने पड़ेंगे तब पता चलेगा कि कितनी ठीक से व्हीलचेयर चलानी आती है। उनके ऐसे बोलने पर मुझे गुस्सा आ गया और मैंने कॉल कट कर दी। हालाँकि उनकी अंतिम बात से मैं कुछ सीमा तक सहमत थी; लेकिन हर व्हीलचेयर यूज़र रिहेब्लिटेशन सेंटर में ट्रेनिग नहीं लें पाते पर वे सब भी व्हीलचेयर चलाते है तो मैं भी उन सभी में से एक थी।

अगले दिन मैंने फिर से गौरव भईया को कॉल की और मुझे उस थेरेपी सेंटर पर ले जाने को बोला ताकि मैं थेरेपिस्ट से कन्सल्ट कर सकूँ; लेकिन भईया बहुत व्यस्त होने के कारण मेरे साथ नहीं जा सकें। उन्होनें हमेशा की तरह मुझे अकेले जाने के लिए प्रोत्साहित किया; लेकिन उनकी व्यस्तता के कारण मैं इस बार भी उन्हें ट्राईसाईकिल से थेरेपी सेंटर न जा सकने का कारण नहीं समझा सकी।

मेरे सामने दो रास्ते थे, पहला – उस दिन थेरेपी सेंटर न जाऊँ और दूसरा – ट्राईसाईकिल की बजाय व्हीलचेयर से सेंटर पर जाऊँ। थेरेपी सेंटर मेरे घर से करीबन तीन – साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी पर था। मुझे बार-बार उन परिचित की बात याद आ रही थी कि ‘मैं कुछ नहीं कर सकती’। उनकी इस बात को मैंने चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए व्हीलचेयर से थेरेपी सेंटर जाने का निर्णय लिया।

उत्साह+प्रोत्साहन+चुनौती के समावेशन का परिणाम यह हुआ कि मैं नयी व्हीलचेयर पर थेरेपी सेंटर जाने को निकल पड़ी। जोश में लिए गए फ़ैसले को पूरा करने के लिए पूरे होश के साथ व्हीलचेयर चलाना बहुत ज़रूरी था। मेरे घर से शुरुआत की दो गलियों का रास्ता ही बहुत ऊबड़-खाबड़ था और उनमें खड़ी ईंटों के स्पीड ब्रेकर भी बने थे। मैं जानती थी कि यदि यह रास्ता पार हो गया तो आगे का रास्ता भी पार हो ही जाएगा। मेरा उत्साह चरम पर था।

मैं धीरे-धीरे इस रास्ते पर आगे बढ़ी और एक-एक कर सभी स्पीड-ब्रेकर्स को ट्रिक के साथ पार करती गई। मैं खुश थी कि मैं अपने रास्ते की बाधाओं को कुशलता से पार कर रही थी। अब मैं मेन-रोड़ पर ट्रेफ़िक में व्हीलचेयर चला रही थी और करीब दो किलोमीटर का रास्ता तय कर चुकी थी। मैंने पहले कभी भी इतनी दूर तक व्हीलचेयर नहीं चलाई थी। इसलिए अब मैं थकने लगी थी, हाथ भी दर्द करने लगे थे; लेकिन उत्साह और प्रोत्साहन इस दर्द और थकान से कहीं ज़्यादा थे। इसलिए मैं अपनी मंज़िल (थेरेपी सेंटर) की ओर बढ़ती जा रही थी।

अचानक एक ऑटो बीच सड़क पर मेरे से कुछ आगे जाकर रुक गई। जिसको देखकर पहले तो मुझे गुस्सा आया कि अब इसको क्रॉस करके जाना होगा; लेकिन जैसे ही ऑटो ड्राइवर को देखा तो सारा गुस्सा ही काफ़ूर हो गया। क्योंकि यह ऑटो ड्राइवर कोई और नहीं गौरव भईया थे जिनके प्रोत्साहन से मैं यहाँ तक पहुँची थी।

मुझे पसीने में लधपध व्हीलचेयर चलाते हुए आगे बढ़ते देखकर वे मुस्करा रहे थे; लेकिन गुस्सा करते हुए बोले कि इतनी दूर व्हीलचेयर से जाने को किसने बोला था, ट्राईसाईकिल पर क्यूँ नहीं निकली ? फिर मैंने उन्हें ट्राईसाईकिल की बजाय व्हीलचेयर पर जाने का पूरा  कारण समझाया। उन्होने मुझे ऑटो में बैठने को कहा और व्हीलचेयर को ऑटो में रख कर मुझे पानी पिलाया और फिर मुझे थेरेपी सेंटर पर ले गए। वहाँ मैंने थेरपिस्ट से कन्सल्ट किया और भईया के साथ ही घर वापस आ गई। रास्ते भर भईया और मैंने बहुत बातें की। भईया यह कहते हुए बहुत खुश हो रहे थे कि मैं जो ठान लेती हूँ वो पूरा कर ही लेती हूँ और मैं यह सोच कर ख़ुश हो रही थी कि मैंने उत्साह और प्रोत्साहन के सहारे एक चुनौती पूरी कर ली थी। मुझे विश्वास हो गया था कि कोई भी मुश्किल मुझे मेरी मंज़िल तक पहुँचने से नहीं रोक सकती।

भईया ने हँसते हुए कहा कि अपनी व्हीलचेयर में पंख लगवालों…और फिर जहाँ मन करे वहाँ उड़ जाना उनकी यह बात सुनकर मैं बस मुस्करा दी।‘ उन्हें कहना चाहती थी कि उड़ने के लिए पंखों से कहीं ज़्यादा हौंसलों की ज़रूरत होती है। किसी परिंदे के पास पंख तो हो, पर हौंसला न हो तो वह परिंदा उड़ान भर ही नहीं सकता। मेरे पास पंख नहीं थे न ही मुझे पंखों की ज़रूरत थी; क्योंकि मेरे पास हौंसला था।

मुझे ये पंक्तियाँ याद आ गई कि “मंज़िल उन्हीं को मिलती है,जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है।”

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Pardeep Singh
Pardeep Singh
8 months ago

2 किलोमीटर मेनरोड पर व्हीलचेयर से सफर…

आपके हौंसले को सलाम नूपुर Ma’am 🙏🙏🙏🙏🙏

Ritu Pandey
Ritu Pandey
8 months ago

नुपुर जी आप हमेशा ऐसे ही उड़ान भरती रहिए और अपनी मंजिलों को पाती रहिए।

Gourav
Gourav
8 months ago

आगे बढ़ने के लिये ज़िद और जुनून होना चाहिए…

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