विकलांगता का समाजशास्त्र
डॉ. सुनील थुआ बता रहे हैं कि सामाजिक जीवन में व्याप्त रूढ़ियों व परंपराओं के कारण विकलांगों को सामान्य नागरिक के तौर पर सम्मानित दृष्टि से नहीं देखा जाता। हमारी व्यवस्थाओं में समावेशी योजना बनाते हुए यह वर्ग आमतौर पर प्राथमिकताओं से सदा ओझल रहता है। इस वर्ग को हमेशा दीन-हीन और दया व सहानुभूति का पात्र बनाए रखने के लिए मज़बूत किलेबंदी की जाती है