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भेड़चाल का भार और विकलांगता की चुनौतियाँ

दुनिया के हर समाज के कुछ तौर-तरीके होते हैं, कुछ ढर्रे होते और जीवन जीने के कुछ मानदंड भी होते हैं। इनमें से कुछ तौर-तरीके, ढर्रे और मानदंड ऐसे होते हैं जिनका जीवन में महत्व होता है। इनके कारण जीवन में व्यवस्था और ऑर्डर आता है और आपस में तालमेल बैठाने में मदद भी मिलती है — लेकिन कुछ तौर-तरीके ऐसे भी होते हैं जिनके पीछे कोई तार्किक आधार या समझदारी नहीं होती और उनका सिर्फ़ इसलिए अनुसरण किया जाता है क्योंकि सब लोग वैसा ही कर रहे और यह एक तरह की भेड़चाल-सी है।

ये तौर-तरीके एक तरह से अंधविश्वास बन जाते हैं और हम बिना सोचे-विचारे उनको अपनाते जाते हैं। कभी उसके पीछे यह कारण होता कि हम खुद सोच-विचार नहीं करते और बस एक परम्परा की तरह चीज़ों को करते जाते हैं। कभी इसके पीछे यह भय भी होता है कि वैसे ही विकलांगता के कारण हमको हाशिए पर धकेला जा रहा है, यदि हमने अपने तौर-तरीके भी मुख्यधारा से अलग कर दिए तो हमारी स्थिति और भी बुरी हो जाएगी। आइए कुछ ऐसी ही रिवायतों पर एक नज़र डालते हैं।

शादी नहीं हुई तो मोक्ष नहीं मिलेगा

शादी-विवाह का मनुष्य के जीवन में भारी महत्व है। इसके माध्यम से वह अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करता है और अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार भी करता है। लेकिन शादी कोई ऐसी अनिवार्य चीज़ नहीं है जिसके लिए हम हर कीमत देने को तैयार हो जाएँ, हर कष्ट सहने को मान जाएँ या सब ज़रूरी विषयों को छोड़ कर बस शादी को ही जीवन का लक्ष्य मान लें; न ही यह सत्य है कि यदि शादी नहीं हुई तो जीवन अधूरा रह जाएगा और हमारे जीवन में गुणवत्ता नहीं आ पाएगी।

हाल ही में, मेरी एक महिला सफ़ाईकर्मी से बात हो रही थी। वह अपनी बेटी की लम्बे समय से चली आ रही बीमारी के बारे में बता रही थी। उसको अपनी बेटी, उसकी बीमारी, उसकी शिक्षा, आत्मनिर्भरता आदि से ज्यादा चिंता इस बात की थी कि उसकी शादी कैसे होगी, जैसे शादी नहीं हुई तो जीवन का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। इसी तरह से मैं अनेक माता-पिता से मिलता हूँ जिनके बेटे या बेटी को किसी तरह की विकलांगता है — वे इस बात के लिए इतने परेशान नहीं होते कि उनके जीवन में किस तरह गुणवत्ता लायी जाए जितने इस बात के लिए परेशान होते हैं कि उसकी शादी कैसे होगी।

बच्चे पैदा करना हर किसी के लिए अनिवार्य है

माता-पिता बनना एक ख़ूबसूरत अनुभव है और एक बच्चे को बड़ा करना हमको जीवन के बारे बहुत कुछ सीखने-समझने का मौका देता है। लेकिन हर परिस्थिति में बच्चे पैदा करने हैं यह जिद विकलांगजन के लिए तो संकट लाती ही है ऊपर से उस बच्चे को भी बिना किसी अपराध के समस्या में डालती है।

आजकल सोशल मीडिया पर एक तस्वीर काफी वायरल हो रही है जिसमें एक विकलांग महिला अपने चारों हाथ-पैरों की सहायता से आगे चल रही है और पीछे उसका अंधा पति बच्चे को गोद में लिए हुए चल रहा है। इस तस्वीर को ममता, प्रेम और संतोष के उदाहरण की तरह पेश किया जा रहा है। पहली बात तो यह कि विकलांग होने के कारण किसी को इतना मुश्किल भरा जीवन जीना पड़ रहा है यह कोई आदर्श बात नहीं बल्कि समाज के लिये शर्मिंदा होने वाला मामला है। दूसरी बात विकलांगता के कारण इतनी शारीरिक चुनौतियों का सामना करते हुए बच्चे पैदा करना ख़ुद के और उस बच्चे दोनों के जीवन के साथ अन्याय है और उसे एक उदाहरण की तरह पेश करना पूरी तरह से ग़लत है।

साड़ी नहीं पहनी तो जीवन व्यर्थ है

इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि साड़ी और ऐसे ही दूसरे भारतीय परिधान खूबसूरत, शालीन वस्त्र हैं। यह भी समझना जरूरी है कि हम किस तरह के वस्त्र पहनें यह हमारा निजी मामला है। जब तक हम किसी कानून का उल्लंघन नहीं कर रहे तो किसी को इस पर टीका-टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। लेकिन यदि कोई विकलांग व्यक्ति असुविधा होने, समस्या होने पर भी साड़ी या कोई और वस्त्र सिर्फ़ इसलिए पहन रहा है क्योंकि उस वस्त्र एक ख़ास किस्म की मान्यता मिली हुई है या उसे पहनना लोकप्रिय है तो इस बात पर दोबारा विचार करने की ज़रूरत है।

आज हमारे पास वस्त्रों में अनेक विकल्प उपलब्ध हैं, और हमारी ज़रूरत के मुताबिक कोई-न-कोई वस्त्र ऐसा मिल ही जाता है जो बिना कोई अतिरिक्त समस्या पैदा किए हमारे व्यक्तित्व को निखारता है। इसके अलावा विशिष्ट जरूरतों (जैसे पेराप्लेजिक होने, वस्त्र पहनने में कठिनाई होने, मूत्र नली, स्टोमा बैग या डाइपर आदि लगे होने के मामलों में) के अनुसार वस्त्रों को ख़ास तौर से तैयार भी कराया जा सकता हैं।

यह केवल कुछ उदाहरण हैं। ऐसे और भी अनेक उदाहरण हमें अपने आस-पास मिल जाएँगे। इस बात को उठाने के पीछे किसी के निजी निर्णयों पर उंगली उठाने की मंशा नहीं है, बल्कि इस बात की ओर ध्यान दिलाना है कोई भी काम जिसे हम इसलिए कर रहे हों कि अधिकांश लोग उसे कर रहे हैं तो एक बार हमें उस पर ध्यान से सोच-विचार करना चाहिए। अपनी परिस्थितियों, चुनौतियों और विकलांगता को भली-भांति समझना चाहिए और यह पता लगाना चाहिए कि इस काम को करने से हमारे जीवन की गुणवत्ता बढ़ेगी या कम होगी। उसके बाद ही उस काम को करने या न करने का निर्णय लेना चाहिए।

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Vijendra
Vijendra
11 months ago

शानदार।

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